नई दिल्लीः पौराणिक कथाओं में त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश का जिक्र मिलता है। ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता माना जाता है। विष्णु को जगत का पालनहार और महेश यानि शिव को संहारक माना जाता है। भगवान विष्णु को राक्षसों और अधर्मियों का वध करने के लिए जाना जाता है। भगवान विष्णु का सबसे […]
नई दिल्लीः पौराणिक कथाओं में त्रिदेव यानि ब्रह्मा, विष्णु और महेश का जिक्र मिलता है। ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता माना जाता है। विष्णु को जगत का पालनहार और महेश यानि शिव को संहारक माना जाता है। भगवान विष्णु को राक्षसों और अधर्मियों का वध करने के लिए जाना जाता है। भगवान विष्णु का सबसे बड़ा अस्त्र उनका सुदर्शन चक्र है। आज हम आपको भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र मिलने की कथा सुनाएंगे। पढ़ें ये रोचक कथा।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार धरती पर राक्षसों का अत्याचार बहुत बढ़ गया। राक्षसों की नजर स्वर्ग पर कब्जा करने पर थी। इससे भयभीत होकर स्वर्ग के सभी देवता विष्णु के पास पहुंचे। उन्होंने धरती और स्वर्ग को राक्षसों से मुक्त करने की गुहार लगाई। विष्णु जानते थे कि शिव के पास इसका उपाय है।
भगवान विष्णु ने शिव की तपस्या शुरू की। वे शिव के एक हजार नामों का जाप करते और हर नाम के साथ एक कमल का फूल चढ़ाते। शिवजी विष्णुजी की परीक्षा लेना चाहते थे। वे विष्णुजी के सामने आए और चुपके से एक कमल का फूल चुरा लिया। विष्णुजी अपनी तपस्या में लीन थे। उन्हें इस बात का पता नहीं चला। जब उन्होंने अंतिम नाम का जाप किया तो उनके पास कमल का फूल नहीं था। अगर वे फूल नहीं चढ़ाते तो उनकी पूरी तपस्या बर्बाद हो जाती। विष्णु जी ने तुरंत अपनी एक आंख निकाली और शिव जी को अर्पित कर दी।
भगवान शिव विष्णु जी की तपस्या से प्रसन्न हुए और उनसे वरदान मांगने को कहा। तब भगवान विष्णु ने राक्षसों के संहार के लिए शस्त्र मांगा। शिव जी ने उन्हें सुदर्शन चक्र दिया जिसका प्रहार कभी खाली नहीं जाता। इसके बाद भगवान विष्णु ने कई बार राक्षसों को मारकर धरती को पाप से मुक्त कराया।
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