2018 का ये कैलेंडर देख लौटेगा बचपन, वीडियो गेम छोड़ दोस्तों संग खेलें छुपन-छुपाई, पिट्ठू, खो-खो, कबड्डी और गिल्ली-डंडे का खेल

बदलते लाइफस्टाइल की वजह से आजकल बच्चे मोबाइल , टीवी और वीडियो गेम्स में बिजी रहते है. आज कल के बच्चों को भारतीय पांरपारिक खेलों के बारे में कोई भी जानकारी नहीं होती है. जो खेल कभी लोगों के बचपन के पसंदीदा खेल होते थे. जैस खो- खो, पिट्ठू, गोटियां, कंचे का खेल, गिल्ली डंडा, आंख मिचौली और रस्साकसी का खेल आज की दुनिया से गायब होते जा रहे है.आज हम आपको 2018 के कैलेंडर के द्वारा उन सभी खेलों के बारे में बताएंगे

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2018 का ये कैलेंडर देख लौटेगा बचपन, वीडियो गेम छोड़ दोस्तों संग खेलें छुपन-छुपाई, पिट्ठू, खो-खो, कबड्डी और गिल्ली-डंडे का खेल

Aanchal Pandey

  • January 2, 2018 11:27 am Asia/KolkataIST, Updated 7 years ago

नई दिल्ली. आजकल के बदलते लाइफस्टाइल के कारण बच्चें भारतीय पारंपरिक खेलों से दूर होते जा रहे है. मोबाइल का बढ़ता प्रयोग , गेम और टीवी का बोलबाल काफी बढ़ चुका है. आजकल के बच्चें मोबाइल फोन पर बिजी रहते हैं. आज के बच्चों को इन खेलों के बारे में पता ही नही होगा. जो कभी बचपन में पसंदीदा खेल हुआ करते थे. अब ये खेल आज की दुनिया से गुम होते जा रहे है. शायद ही इन खेलों को आज कोई खेलता होगा. आज हम आपको भारतीय पारंपारिक खेलों खो-खो, गोटियां और कंचे की दुनिया से रुबरु कराते हैं. जो आज की दुनिया से गायब होते जा रहे है.2018 का ये कैलेंडर आपको बचपन की याद दिला देगा. हर महीने जब भी आप इसे पलटेंगे आपके बचपन का एक खेल याद आएगा.

पिट्ठू. पत्थरों का खेल है. इस खेल में सात चपटे पत्थर का प्रयोग किया जाता है. इन पत्थरो को एक के बाद एक के ऊपर एक जमाया जाता है. नीचे सबसे बड़ा पत्थर और फिर ऊपर की तरफ छोटे होते पत्थर होते है. इस गेम में दो टीमें होती हैं और एक गेंद, इसे घर के बाहर खुले पार्क में खेलते है. एक टीम का खिलाडी गेंद से पत्थरों को गिराता है और फिर उसकी टीम के सदस्यों को उसे फिर से जमाना पड़ता है और बोलना पड़ता है पिट्ठू ग्राम अगर इस बीच दूसरी टीम के ख़िलाड़ी गेंद को पीछे से मारते हैं. यदि वह गेंद पिट्ठू ग्राम बोलने से पहले लग गयी तो टीम बाहर हार जाती है. इस खेल को कितने भी लोग खेल सकते है. लेकिन दोनों टीमों में बराबर खिलाड़ी होने जरूरी है.

गोटियां. पांच पत्थर के गोल और छोटे पत्थरों के टुकड़ो से खेलती हैं. दायें हाथ से गुटका उछाला जाता है और बायें हाथ को घर या कुत्ते के आकर में रखकर उनके नीचे से पत्थरों के टुकड़ो को निकला जाता हैं. बाद में सबको एक साथ एक हाथ से एक पत्थर के टुकड़े को ऊपर उछालते हुए उठाना होता है.

कंचे का खेल.बचपन में कंचे का खेल हर बच्चे का मनपसंद खेल होता था. कंचे खलने के लिए एक गड्ढा बनाया जाता है और उसमें कुछ दूरी से एक रेखा खिंची जाती है. उस रेखा से खड़े होकर कंचे फेंके जाते हैं, जिसके कंचे सबसे ज्यादा गिनती में गड्ढे में जाते हैं वह जीतता है. लेकिन बदलते लाइफस्टाइल के कारण आजकल के बच्चे कंचे के खेल के बारे में कुछ जानते भी नहीं है.

खो – खो. बचपन में सबसे ज्यादा खो खो खेल खेला जाता था. इस गेम में दो टीम बनाई जाती है. एक टीम के सभी सदस्य कूछ दूरी पर जमीन पर बैठ जाते है और एक सदस्य दूसरी टीम के सदस्य के साथ गेम शुरू करते है. गिल्ली डंडा. यह खेल सबसे प्रचीन खेलों मे से एक है. इस खेल को पहले बच्चे खेलना ज्यादा पसंद करते थे. लेकिन आज कल के बच्चो ने इस खेल का नाम भी नही सुना होगा.आंख मिचौली. यह गेम पहले स्कूलों में बहुत खेला जाता था. लेकिन आजकल के बच्चे मोबाइल फोन के साथ आंख मिचौली खलते है.रस्साकसी. इस गेम दो टीम बनाकर अपने ताकत का जलवा दिखाने वाला यह खेल आज की दुनिया में दम तोड़ चुका है.

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