जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ने वाले आदिवासी लोकनायक बिरसा मुंडा के गांव का सच जानकर हैरान रह जाएंगे!

दीपक विश्वकर्मा उलियाती-खूंटी. अंग्रेजों के विरुद्ध जनजातीय विद्रोह उलगुलान का नेतृत्व कर जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ने वाले आदिवासी जन चेतना के लोकनायक और भगवान बिरसा मुंडा के शौर्य और बलिदान दिवस की 150वी जयंती झारखंड समेत समूचा भारत मना रहा है, देश के प्रधानमंत्री से लेकर राज्यो के मुख्यमंत्री तक तरह तरह की घोषणाएं कर […]

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जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ने वाले आदिवासी लोकनायक बिरसा मुंडा के गांव का सच जानकर हैरान रह जाएंगे!

Yashika Jandwani

  • November 14, 2024 7:40 pm Asia/KolkataIST, Updated 7 hours ago

दीपक विश्वकर्मा


उलियाती-खूंटी.
अंग्रेजों के विरुद्ध जनजातीय विद्रोह उलगुलान का नेतृत्व कर जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ने वाले आदिवासी जन चेतना के लोकनायक और भगवान बिरसा मुंडा के शौर्य और बलिदान दिवस की 150वी जयंती झारखंड समेत समूचा भारत मना रहा है, देश के प्रधानमंत्री से लेकर राज्यो के मुख्यमंत्री तक तरह तरह की घोषणाएं कर रहे है, उसी क्रम में उनकी इनखबर टीम पहुंची उनकी जन्मस्थली उलियातु गांव.

इलाज के अभाव में लड़की ने तोड़ा दम

खूंटी के उलिहातू में 15 नवंबर 1875 को बिरसा मुंडा का जन्म हुआ। बिरसा की प्रारंभिक शिक्षा चाईबासा के जर्मन मिशन स्कूल में हुई। बिरसा मुंडा ने मुंडाओं को जल, जंगल, जमीन की रक्षा हेतु बलिदान देने के लिए प्रेरित किया। बिरसा मुंडा का पूरा आंदोलन 1895 से लेकर 1900 तक चला। हमारी टीम जैसे ही धरती आबा के गांव पहुचीं तो हमारे सामने ही एक बच्ची मृत अवस्था में एम्बुलेंस से उतारी जा रही थी, बताया गया कि अस्पताल दूर है कभी डॉ रहते है कभी नहीं रहते और तो और एम्बुलेंस चलाने वाला चालक भी कोई नहीं, ग्रेजुएशन कर रहा एक किशोर इस जिम्मेदारी को संभाल रहा है.

Birsa Munda

बिरसा मुंडा के गांव में समस्याओं का अंबार

गांव में कुछ और समय बिताया तो पता लगा कि समस्याओं का अंबार लगा हुआ है, पोस्ट ऑफिस है पर पोस्टमैन का अता पता नहीं, पानी आने का कोई समय नहीं और तो और बिजली भी फिलहाल इसलिए सही हुई क्योंकि आज उनकी जयंती है।
बिरसा मुंडा के नाम पर करोड़ो रुपए खर्च किए जा रहे है, और तो और 150वीं जयंती पर 150₹ का सिक्का भी लांच किया जाएगा जिसमें धरती आबा का चित्र अंकित होगा. बेशक उनकी याद में सिक्का जारी किया जाए लेकिन वो किसी काम का नहीं क्योंकि बेरोजगारी से नौजवानों का हाल बुरा है. मूलभूत सुविधाओं के बिना भी ग्रामीण अपने भगवान की पूजा उतनी ही शिद्दत से करते है जैसे पहले करते थे,

लाइब्रेरी भवन में किताबें नहीं

पढ़ने के शौक़ीन धरती आबा के नाम पर बड़ा लाइब्रेरी भवन है जो सालों से किताबों के अभाव में धूल फांक रहा है. इस बाबात जब सरकारी पक्ष जानने की कोशिश की तो जवाब भी उसी अंदाज में मिला. ये चर्चा आज इसलिए हो रही है क्योंकि जिस धरती आबा यानी कि धरती के भगवान के नाम पर करोड़ो खर्च किए जा रहे हैं, उस धरती पर पैदा हुए उन्हीं के लोगो रोटी-कपड़ा-मकान के लिए दर दर भटक रहे हैं.

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