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आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती को मिलेगा भारत रत्न, सनातन धर्म की विजय?

नई दिल्ली: नलवी खुर्द स्थित वेद विद्या गुरूकुल कुटिया के वार्षिक उत्सव में देशभर से आए साधु-संतों ने आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती को हिंदुस्तान रत्न से सम्मानित करने का प्रस्ताव पारित किया। इस प्रस्ताव को महर्षि दयानन्द सरस्वती की 200वीं जयंती के अवसर पर सबसे बड़ा सम्मान बताया गया। वहीं कार्यक्रम में विशेष रूप से शामिल कल्किपीठाधीश आचार्य प्रमोद कृष्णम, कोल्हापुर से आए काड़सिद्वेश्वर जी महाराज और अध्यक्षता कर रहे स्वामी सम्पूर्णानन्द सरस्वती ने इस ऐतिहासिक फैसले का समर्थन किया।

हिंदू कभी किसी को परेशान नहीं करता

इस अवसर पर युवा सनातन संसद में देशभर से पहुंचे साधुओं ने जोश से भरे वक्तव्य दिए। उन्होंने कहा कि हिंदू कभी किसी को परेशान नहीं करता, लेकिन यदि कोई उसे परेशान करता है, तो वह उसका उचित जवाब देगा। इस दौरान सभा में युवा हिंदुस्तान साधु समाज के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी रामानन्द, वरिष्ठ उपाध्यक्ष महंत जगजीत सिंह, अध्यक्ष शिवम महंत, महंत दिनेश दास, हिमाचल प्रदेश से स्वामी रविन्द्र कंवर, सर्व जैन समाज के अध्यक्ष डॉ. मणिन्द्र जैन और बाकी प्रमुख संत भी उपस्थित रहे।

सनातन धर्म की विजय

मुख्य अतिथि आचार्य प्रमोद कृष्णम ने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का नाम आदिकाल से पूजनीय है और यह समय सनातन धर्म के उत्थान का है। उन्होंने अयोध्या में भगवान राम के भव्य मंदिर के निर्माण को सनातन धर्म की महान विजय बताया और कहा कि राम और देश के नाम पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही आचार्य ने जोर देते हुए कहा कि हमारा राष्ट्र दुश्मन की ताकत से नहीं, बल्कि राष्ट्र में मौजूद कुछ जयचंदों के कारण गुलाम रहा।

धर्मांतरण को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा

स्वामी काड़सिद्वेश्वर जी ने अपने संबोधन में कहा कि अब धर्मांतरण को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। गुरूकुल के ब्रह्मचारियों ने इस अवसर पर विशेष व्यायाम प्रदर्शन भी किया, जिसे सभी उपस्थित लोगों ने सराहा। कार्यक्रम के अंत में स्वामी सम्पूर्णानन्द सरस्वती और आचार्य संदीप ने सभी साधु-संतों को सम्मानित किया। इस आयोजन में सरपंच रत्न सिंह, आचार्य अग्निदेव, वेदप्रकाश आर्य, बलजीत आर्य समेत भारी संख्या में लोग उपस्थित थे।

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Yashika Jandwani

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