आखिर क्यों भारत के तिरंगे को बार-बार बदला गया, जानें इतिहास

नई दिल्ली: दुनिया के हर स्वतंत्र देश का अपना राष्ट्रीय ध्वज होता है। यह एक स्वतंत्र देश का प्रतीक है। भारत के राष्ट्रीय ध्वज को इसके वर्तमान स्वरूप में 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता से कुछ महीने पहले 22 जुलाई 1947 को आयोजित संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया […]

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आखिर क्यों भारत के तिरंगे को बार-बार बदला गया, जानें इतिहास

Manisha Shukla

  • August 13, 2024 6:34 pm Asia/KolkataIST, Updated 3 months ago

नई दिल्ली: दुनिया के हर स्वतंत्र देश का अपना राष्ट्रीय ध्वज होता है। यह एक स्वतंत्र देश का प्रतीक है। भारत के राष्ट्रीय ध्वज को इसके वर्तमान स्वरूप में 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता से कुछ महीने पहले 22 जुलाई 1947 को आयोजित संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था।

तिरंगे की शान के खातिर सशस्त्र बालों और अनगिनत नागरिकों ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपने प्राणों की आहुति दी थी। भारत 15 अगस्त 2024 को 78वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी कर रहा है। इस दिन लोगो अपने घरों, समाजों, स्कूलों और अन्य स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर अपनी देशभक्ति का प्रदर्शन करते हैं।

कैसे जन्म हुआ तिरंगे का ?

आज तिरंगे को देख गर्व और सम्मान की भावना हमारे अंदर आती है। भारतीय तिरंगा की कल्पना सबसे पहले स्वतंत्रता सेनानी और महात्मा गांधी के अनुयायी पिंगली वेंकैया ने की थी. साल 1921 में, वेंकैया ने गांधी जी को एक ध्वज डिजाइन भेंट किया जिसमें दो रंग थे – लाल और हरा जो भारत के दो प्रमुख समुदायों, हिंदू और मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करते थे। गांधी जी ने शांति और भारत के बाकी समुदायों के प्रतीक के रूप में एक सफेद पट्टी जोड़ने का सुझाव दिया, साथ ही आत्मनिर्भरता को दर्शाने के लिए एक चरखा भी जोड़ने का सुझाव दिया था ।

तिरंगे में कब कब बदलाव हुए ?

भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को अपना वर्तमान स्वरूप प्राप्त करने से पहले कई बार बदला गया है। पहला राष्ट्रीय ध्वज 7 अगस्त, 1906 को कलकत्ता के पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) में फहराया गया था। इसे स्वामी विवेकानंद की आयरिश शिष्या सिस्टर निवेदिता ने डिजाइन किया था। कुछ समय बाद, इस ध्वज को सिस्टर निवेदिता का ध्वज कहा जाने लगा।

मैडम कामा और उनके निर्वासित क्रांतिकारियों के समूह ने 1907 में दूसरी बार झंडा फहराया। यह राष्ट्रीय ध्वज जैसा ही था, लेकिन कमल के स्थान पर बिग डिपर का प्रतिनिधित्व करने वाले सितारे थे। यह ध्वज विदेशी भूमि पर फहराया जाने वाला पहला भारतीय ध्वज बन गया। इसे “बर्लिन समिति ध्वज” भी कहा रंग था।

इस ध्वज को तीसरी बार 1917 में डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने फहराया था। यह राष्ट्रीय ध्वज पिछले दो ध्वजों से बहुत अलग था, क्योंकि इसमें लाल और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियाँ थीं, ‘सप्तर्षि’ नक्षत्र के आकार में सात तारे थे। इसमें एक अर्धचंद्र और सबसे ऊपर एक तारा था, लेकिन यह ध्वज आम जनता के बीच लोकप्रिय नहीं हो सका था ।

इस डिज़ाइन में कई वर्षों में कई बदलाव हुए और 1931 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने औपचारिक रूप से तिरंगा झंडा अपना लिया। इस संस्करण में सबसे ऊपर केसरिया, बीच में सफेद और सबसे नीचे हरा रंग था, बीच में एक घूमता हुआ चरखा था। इस झंडे को भारत के विविध समुदायों और स्वतंत्रता के लिए उसकी आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले एक एकीकृत प्रतीक के रूप में देखा गया।

 

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