गया में पिंडदान का इतना महत्व क्यों है, पितरों की आत्मा के लिए कैसे बना मुक्ति का मार्ग?

पटना: पितृ पक्ष के दौरान हम अपने पूर्वजों के लिए श्राद्ध और तर्पण करते हैं. इस दौरान कई लोग ऋषिकेश, बनारस और हरिद्वार जैसे जगहों पर पिंडदान करते हैं, लेकिन इन सभी स्थलों में सबसे ज्यादा महत्व गया को दिया जाता है. मान्यताओं के मुताबिक गया में पिंडदान और पितरों का तर्पण करने से उनकी आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि पिंडदान के लिए गया इतना महत्वपूर्ण स्थल कैसे बाना? अगर नहीं तो चलिए आज हम आपको बताते इसके बारे में.

पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार गया में एक समय में गयासुर नामक एक अत्यंत धार्मिक और पराक्रमी असुर था, जो अपनी तपस्या और भक्ति के कारण बेहद शक्तिशाली हो गया. उसकी भक्ति से न केवल मनुष्य बल्कि देवता भी डरने लगे थे. वो तपस्या में इतना लीन हो गया कि खूद ब्रह्मा जी ने खुश होकर उसे एक वरदान दिया, जिसके चलते गयासुर को देखने से ही लोग पवित्र हो जाते थे और उनको स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती थी. उसकी शक्ति के कारण स्वर्ग लोक अव्यवस्थित होने लगा.

इस वजह से गया का नाम प्रसिद्ध है

इसके बाद देवता उससे परेशान होकर भगवान विष्णु से सहायता मांगने चले गए. जिसके बाद भगवान विष्णु ने गयासुर से कहा कि वो अपने शरीर को यज्ञ के प्रति समर्पित करे. इसके भगवान विष्णु के इस प्रस्ताव को गयासुर ने स्वीकार कर लिए. विष्णु भगवान ने गयासुर के शरीर पर यज्ञ शुरू किया. यज्ञ समाप्त के बाद भगवान विष्णु ने गयासुर को मोक्ष प्रदान करने का वचन दिया और ये भी कहा कि उसकी शरीर जहां-जहां फैलेगा वो स्थान पवित्र हो जाएगा और उस स्थान पर जो भी व्यक्ति अपने पितरों का पिंडदान करेगा, उसके पितृ की मोक्ष की प्राप्ति होगी. माना जाता है कि गया नगरी में गयासुर का शरीर पत्थर बनकर फैल गया था. इसी वजह से इस स्थान का नाम गया पड़ा.

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