सोमवार को असम में NRC यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स ने नागरिकता के संबंध में कथित अंतिम मसौदा जारी किया. जिसके बाद हंगामा मच गया. एनआरसी के फाइनल ड्राफ्ट में 3.29 करोड़ आवेदकों में से 40 लाख लोगों की नागरिकता को अवैध माना गया. आखिर क्या है एनआरसी और असम में इसे लेकर इतना हंगामा क्यों मचा है?
नई दिल्लीः रविवार रात से ही असम और एनआरसी का मुद्दा सुर्खियों में बना हुआ था. NRC यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स सोमवार को स्थानीय नागरिकों की नागरिकता से जुड़ा कथित अंतिम मसौदा जारी करने जा रहा था. असम में अधिकतर लोगों के चेहरों पर शिकन थी. एक ही बात उनके जेहन में घूम रही थी कि अगर उनका और उनके परिवार का नाम NRC के इस ड्राफ्ट में नहीं होगा तो उनका क्या होगा? क्या उन्हें देश से निकाल दिया जाएगा? क्या उन्हें जेल में डाल दिया जाएगा? उनके साथ कैसा सलूक होगा?
इंतजार में बीती रात खत्म हुई और सोमवार सुबह 10 बजे एनआरसी के अधिकारियों ने ड्राफ्ट जारी कर दिया. इसमें 3.29 करोड़ आवेदकों में से 2.89 करोड़ लोगों को नागरिकता प्रदान की गई थी. बाकी बचे करीब 40 लाख लोगों की नागरिकता को अवैध घोषित किया गया. ड्राफ्ट जारी होते ही एनआरसी अधिकारियों ने यह भी साफ किया कि यह अंतिम मसौदा नहीं है, जिन लोगों का नाम इसमें नहीं है वह लोग एनआरसी के पास शिकायत और आपत्ति दर्ज करा सकते हैं. जिसके बाद 40 लाख लोगों ने राहत की सांस ली.
क्या है NRC? क्यों मचा है बवाल?
NRC उन्हीं राज्यों में लागू होता है जहां अन्य देश के नागरिक भारत में चोरी-छिपे आ जाते हैं. ऐसे में एनआरसी पर जिम्मा होता है कि वह भारतीय नागरिकों की पहचान करें. NRC की रिपोर्ट ही तय करती है कि कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं. एनआरसी के आज जारी किए गए ड्राफ्ट में उन भारतीय नागरिकों के नाम शामिल हैं जो 25 मार्च, 1971 से पहले से असम में रह रहे हैं. 1947 में जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो कुछ लोग असम से तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (मौजूदा बांग्लादेश) चले गए. उन लोगों की जमीनें असम में थीं, लिहाजा बंटवारे के बाद भी उन लोगों का दोनों ओर आना-जाना जारी रहा.
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1985 में लागू हुआ असम समझौता
बंटवारे के बाद बांग्लादेश से आने वाले अवैध आप्रवासियों की पहचान के लिए राज्य में 1951 में पहली बार NRC को अपडेट किया गया था. 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद काफी संख्या में असम में शरणार्थी पहुंचे. शरणार्थियों के असम में घुसने से राज्य की आबादी का स्वरूप ही बदलने लगा. ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने 80 के दशक की शुरुआत में असम आंदोलन की शुरूआत की. 15 अगस्त 1985 को असम समझौते पर हस्ताक्षर किए गए. समझौते के अनुसार, 25 मार्च 1971 के बाद से असम में अवैध रूप से रह रहे लोगों के नाम NRC में शामिल नहीं होंगे. इसमें एनआरसी को अपडेट करने की भी बात कही गई.
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पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने NRC को अपडेट करने का फैसला किया
साल 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1951 के NRC को अपडेट करने का फैसला किया. विवाद बढ़ा और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. 2015 में शीर्ष अदालत की निगरानी में IAS अधिकारी प्रतीक हजेला को एनआरसी अपडेट करने का काम सौंपा गया. जिसके बाद एनआरसी के रजिस्ट्रार जनरल की देखरेख में एनआरसी केंद्र खोले गए. असम में रह रहे लोगों के दस्तावेजों की जांच शुरू हुई. तय किया गया कि जिनके पूर्वजों के नाम 1951 के एनआरसी में या 25 मार्च, 1971 तक के किसी वोटर लिस्ट में मौजूद हों, उन्हें भारतीय नागरिक माना जाएगा.
1.9 करोड़ को जनवरी में मिली थी भारतीय नागरिकता
12 अन्य सर्टिफिकेट्स या कागजात जैसे जमीन की रजिस्ट्री आदि के कागज, स्कूल-कॉलेज के सर्टिफिकेट्स, पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र, अदालत के दस्तावेजों को भी अपनी नागरिकता साबित करने का पैमाना निर्धारित किया गया. असम में इसी साल जनवरी में 3.29 आवेदकों में से 1.9 करोड़ लोगों के नाम भारतीय नागरिकों के तौर पर दर्ज कर दिए गए. 30 जुलाई को कथित अंतिम मसौदा जारी किया जाना था. 40 लाख लोगों के नाम मसौदे में नहीं होने पर संसद में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि जिन लोगों के नाम इसमें नहीं हैं उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है. वह लोग 30 अगस्त से NRC केंद्रों पर अपनी शिकायत और आपत्ति दर्ज करा सकते हैं. बहरहाल यह उन 40 लाख लोगों के लिए फौरी राहत जरूर है लेकिन आने वाले समय में इसे लेकर विवाद का एक और चेहरा जरूर सामने आएगा.
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