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केसर के रस से धोते कपड़े, न बिजली न फोन, बच्चे पढ़ते वेद-पुराण, जानें इस कलियुग में कहां हैं ये वैदिक गांव

नई दिल्ली: इस गांव के लोग रोज सुबह स्नान-ध्यान करके बड़ी श्रद्धा से भजन करते हैं, जिसके बाद प्रसाद खाते हैं और एक-दूसरे में बांटते भी हैं. इसके बाद सभी अपने काम में व्यस्त हो जाते हैं. गांव के सभी बच्चों को वैदिक शिक्षा दी जाती है. बच्चे कृषि और Handicraft भी सीखते हैं. बचपन से ही बच्चों को अपने माता-पिता और गुरुजनों की सेवा करना सिखाया जाता है. आइए आगे जानते हैं कि यह कौन सा गांव है जो इस कलयुग में होने के बावजूद भी हर कोई बिजली, मोबाइल और टीवी से दूर है।

आंध्र प्रदेश में है ये गांव

आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में एक ऐसा गांव है, जहां लोग सालों से वैदिक परंपरा के अनुसार रह रहे हैं. प्रकृति की गोद में बसे इस गांव का नाम कुर्मा है. यहां के लोगों की लाइफस्टाइल आज भी पारंपरिक है. यहां के लोग गुरुकुल परंपरा का पालन करते हैं. ग्रामीण भी पुरानी तरह से खेती करते हैं. खेती के लिए मशीनों और रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता है. कुरमा गांव के लोग आधुनिकता से कोसों दूर हैं. गांव में मिट्टी, रेत और चूने से बने घर दिख जाएंगे. लोग कहते हैं कि घर बनाने के लिए ये रेत में नींबू, गुड़ और अन्य चीजें मिलाई जाती हैं. इन्हीं की मदद से दीवारों की जुड़ाई होती है. घर बनाने में सीमेंट या लोहे का उपयोग नहीं किया जाता है.

गांव में वैदिक परंपरा

1. इस गांव में कुल 56 लोग रहते हैं. गांव के लोग वर्षों से वैदिक परंपरा के अनुसार जीवन यापन करते आ रहे हैं.

2. गाँव में एक अध्यापक हैं, जो वेद पढ़ाते हैं. यहां काले चावल और लाल चावल की खेती की जाती है.

3. गांव में ही कपड़े बुनने और सिलने का काम करने वाले लोग हैं. गांव में एक बढ़ई भी है.

4. कपड़े धोने के लिए डिटर्जेंट का भी उपयोग नहीं किया जाता है.

5. यहां के लोग प्राकृतिक केसर के रस से कपड़े धोते हैं.

6. गांव में बिजली नहीं है. पंखे, टीवी और फ़ोन का लोग इस्तेमाल नहीं करते हैं.

7. रामायण, वेद-पुराण सहित अन्य हिंदू ग्रंथों के बारे में लोगों को जानकारी दी जाती है.

गांव में रहने के लिए क्या है नियम?

2018 में, अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण चेतना सोसायटी के संस्थापक भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद और उनके शिष्यों ने यहां अपनी कुटिया स्थापित की. शाम को उनके द्वारा आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं. यहां के छात्र तेलुगु, संस्कृत, अंग्रेजी और हिंदी में पारंगत हैं. इस गांव में रहना और खाना फ्री है. जो लोग यहां रहना चाहते हैं उन्हें यहां के नियमों का पालन करना होगा. महिलाओं को अकेले रहने की इजाजत नहीं है.अगर वे अपने पिता, पति या भाई के साथ आती हैं तो उन्हें रहने की इजाजत है। जब तक कोई आश्रम में रहता है, उसे सुबह 3.30 बजे उठकर दिव्य पूजा करनी होती है। सुबह भजन और प्रसाद ग्रहण करने के बाद वे अपने दैनिक कार्य में लग जाते हैं.

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Aprajita Anand

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