मुंबई : महाराष्ट्र में मुसलमानों की आबादी 1.3 करोड़ है जो राज्य की कुल आबादी का 11.56 प्रतिशत है लेकिन विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या 10 प्रतिशत का आंकड़ा भी नहीं छू पाई है. 2019 के विधानसभा चुनाव में विधानसभा में सिर्फ 10 मुस्लिम प्रतिनिधि चुनकर आए थे. जबकि महाराष्ट्र की कई सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 30 प्रतिशत से भी ज्यादा है. कुछ सीटें ऐसी भी हैं जहां 50 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं. मुस्लिम विधायकों की कम संख्या के पीछे एक कारण बड़ी राजनीतिक पार्टियों द्वारा टिकट वितरण में उन्हें कम हिस्सेदारी दिया जाना है.
साल 1962 से लेकर 2019 तक किसी भी चुनाव में मुस्लिम विधायकों की संख्या 10 प्रतिशत का आंकड़ा भी नहीं छू पाई है. स्थिति यह है कि 1962 में 11 मुस्लिम विधायक चुने गए थे. जबकि 2019 में सिर्फ 10 ही चुने गए हैं. 1999 से 2019 तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले चार चुनावों में 1999 में 12, 2004 में 11, 2009 में 10 और 2014 में 9 विधायक चुने गए।
पिछले चुनाव के 10 मुस्लिम विधायकों में से दो असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM से, तीन कांग्रेस से, एक अविभाजित शिवसेना से, दो सपा से और दो अविभाजित NCP से चुने गए थे। इनमें शाह फारूक अनवर (AIMIM), अब्दुल सत्तार (शिवसेना), मोहम्मद इस्माइल (AIMIM), रईस शेख (SP), असलम शेख (कांग्रेस), अबू आज़मी (SP), नवाब मलिक (NCP), जीशान सिद्दीकी (कांग्रेस), अमीन पटेल (कांग्रेस) और हसन मुश्रीफ (NCP) शामिल हैं।
विधानसभा में मुसलमानों की भागीदारी तभी बढ़ेगी जब पार्टियां उन्हें टिकट देने में रुचि दिखाएंगी, लेकिन सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, सभी इसमें कंजूसी करते नजर आ रहे हैं। सत्तारूढ़ महायुति में से भाजपा ने किसी मुस्लिम नेता को टिकट नहीं दिया है, जबकि शिंदे गुट की शिवसेना ने एक मुस्लिम उम्मीदवार जबकि अजित पवार की एनसीपी ने चार मुस्लिम नेताओं को टिकट दिया है।
महाविकास अघाड़ी में शिवसेना-यूबीटी ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं दिया है, जबकि कांग्रेस ने आठ, एनसीपी-सपा और सपा ने एक-एक मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारा है। शरद पवार गुट ने अभिनेत्री स्वरा भास्कर के पति फहद अहमद को और सपा ने अबू आजमी को टिकट दिया है। वहीं, चुनाव में 14 उम्मीदवार उतारने वाली एआईएमआईएम ने 10 मुस्लिम नेताओं को टिकट दिया है।
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