देहरादून : उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले के बाद अब हल्द्वानी में एक बड़े इलाके को खाली करवाने का आदेश दिया गया है. इस इलाके में 8 से 10 मस्जिद, 4365 घर, 2 मंदिर, दो सरकारी इंटर कॉलेज और करीब आधा दर्जन प्राइवेट स्कूल मौजूद हैं जो आने वाले कुछ दिनों में खाली हो जाएंगे.
दरअसल, उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य के हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर अनाधिकृत रूप से बसी कॉलोनी को हटाने का आदेश दिया है. इस आदेश के बाद करीब 50 हजार लोग बेघर हो जाएंगे. हाई कोर्ट के इस फरमान को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई है. दूसरी ओर राज्य के इस हिस्से को लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है.आदेश के बाद हल्द्वानी का बनभूलपुरा इलाका शाहीन बाग़ बन गया है. हजारों की संख्या में महिला और पुरुष छत छिन जाने के फरमान के बाद सड़कों पर आ गए हैं जिसमें एक बड़ी आबादी अल्पसंख्यकों की है. शांतिपूर्ण तरीके से ये प्रदर्शन किया जा रहा है. जहां इलाके की महिलाएं और बच्चों के मुख पर एक ही सवाल है कि हमारे साथ ही ऐसा क्यों? दरअसल लोगों का कहना है कि हटाने से पहले उन्हें कहीं बसाया जाया चाहिए.
उत्तराखंड के हल्द्वानी में बनभूलपुरा इलाका मौजूद है जहां करीब 50 हजार की आबादी रहती है. बनभूलपुरा में इंदिरा नगर और गफ्फूर बस्ती का इलाका भी आता है. करीब 29 एकड़ जमीन पर ये इलाका बसा हुआ जिसे लेकर रेलवे ने दावा किया है कि यह जमीन उसकी है. इस जमीन पर बसे लोगों ने यहां अतिक्रमण किया है. अब हाई कोर्ट ने इस पर अतिक्रमण हटाने का फैसले दिया है. जहां दशकों से रह रहे लोगों को एक झटके में हटा दिया जाएगा.
कई सालों से इस जमीन को लेकर कोर्ट में लड़ाई चल रही थी. जहां दूसरी ओर दावा किया जाता है कि करीब 29 एकड़ की यह जमीन नजूल की है, दरअसल नजूल भूमि पर अवैध कब्जाधारियों को फ्री होल्ड लीज अधिकार देने के लिए उत्तराखंड सरकार 2021 में नजूल नीति लाई थी. हालांकि इसका फायदा बनभूलपुरा के लोगों को नहीं मिल पाया. क्योंकि मामला कोर्ट में चल रहा था. इस इलाके में एक बड़ी आबादी अल्पसंख्यक भी है जो कहती है कि यह जमीन उनकी नहीं, सरकारी है, लेकिन राज्य सरकार की न कि रेलवे की.
बेघर होने जा रहे इन लोगों का कहना है कि उत्तराखंड सरकार ने नजूल नीति बनाई थी. इस नीति के तहत नजूल की जमीन को फ्री होल्ड किया जा सकता है. इस तरह उनकी कॉलोनी भी वैध हो जाती है. लेकिन जिस समय उत्तराखंड सरकार ये नीति लेकर आई थी उस समय बनभूलपुरा का मामला कोर्ट में था. इसलिए यहां पर राज्य सरकार की नजूल नीति लागू नहीं हो पाई.
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