Namaz in mosque: उत्तर प्रदेश के बरेली से एक बड़ा बयान सामने आया है जिसमें ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने महिलाओं के मस्जिद में नमाज पढ़ने के अधिकार की वकालत की है. उन्होंने स्पष्ट कहा कि कोई भी मौलवी महिलाओं को मस्जिद में नमाज पढ़ने से नहीं रोक सकता. बशर्ते कुछ नियमों और शर्तों का पालन किया जाए. इस बयान ने धार्मिक और सामाजिक हलकों में नई बहस को जन्म दे दिया है.
इस्लाम में महिलाओं और मस्जिद का इतिहास
मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने इस्लाम के शुरुआती दौर का हवाला देते हुए बताया कि मस्जिदों में महिलाएं नमाज पढ़ने आती थीं और जमात में शामिल होती थीं. उन्होंने कहा ‘इस्लाम के शुरूआती दिनों में औरतों को मस्जिद में नमाज पढ़ने से कभी मना नहीं किया गया.’ हालांकि उन्होंने हजरत उमर-ए-फारूक के खलीफा काल का जिक्र करते हुए कहा कि बाद में हालात बदल गए. उस समय दरबार-ए-खिलाफत में शिकायतें आईं कि मस्जिदों में महिलाओं के आने से फसाद का खतरा पैदा हो सकता है. इसके चलते यह हुक्म जारी हुआ कि महिलाएं घर पर ही नमाज पढ़ें. मौलाना ने बताया ‘घर में नमाज पढ़ने का सवाब मस्जिद के बराबर ही मिलेगा. इसलिए फसाद से बचने के लिए यह फैसला लिया गया.’
फसाद का डर बना था रोक की वजह
मौलाना ने इस बात पर जोर दिया कि मस्जिदों में महिलाओं को नमाज से रोकने का कारण केवल फसाद का अंदेशा था. उन्होंने कहा ‘यह कोई धार्मिक प्रतिबंध नहीं था बल्कि उस वक्त की परिस्थितियों के हिसाब से लिया गया फैसला था.’ उनका कहना है कि इतिहास की इस पृष्ठभूमि को समझना जरूरी है ताकि आज के संदर्भ में सही निर्णय लिया जा सके.
आज के दौर में क्या है स्थिति?
मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने वर्तमान समय की बात करते हुए कहा ‘आज हनीफी उलमा महिलाओं को मस्जिद में नमाज पढ़ने से रोकते हैं लेकिन दूसरे मसलक के उलमा ऐसा नहीं करते.’ उन्होंने इस अंतर को समझने की जरूरत बताई. उनका कहना था कि अगर कोई महिला रास्ते में हो और नमाज का वक्त हो जाए तो वह नजदीकी मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ सकती है. उन्होंने कहा ‘कोई मौलवी उसे रोक नहीं सकता लेकिन कुछ नियमों का पालन करना होगा.’ हालांकि उन्होंने इन नियमों को स्पष्ट नहीं किया. जिससे इस बयान पर और चर्चा की गुंजाइश बनी हुई है.
यह भी पढे़ं- ‘ईद की सेवइयां खिलानी हैं तो गुझिया भी खानी पड़ेगी’, पीस कमेटी के सामने बोले संभल CO अनुज चौधरी…नमाज पर बोले