नई दिल्ली: पार्टी को मजबूत बनाने के लिए मायावती ने अपने गुरु कांशीराम की राह को अपनाया है। गौरतलब है कि कांशीराम ने ही मायावती को पार्टी की कमान सौंपी थी। उनकी रणनीति कई बार पार्टी के लिए सफल रही, तो कई बार असफल भी साबित हुई। हालांकि, वर्तमान में बसपा उत्तर प्रदेश तक सिमटती नजर आ रही है।

बसपा की गिरती साख को बचाने के लिए मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी में लाया था, लेकिन पार्टी की स्थिति को देखते हुए अब उन्होंने कांशीराम की रणनीति को फिर से अपनाने का फैसला किया है। उन्होंने पार्टी को परिवारवाद से दूर रखते हुए बसपा को मजबूत बनाना अपना मुख्य मिशन बना लिया है। कभी देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी रही बसपा अब उत्तर प्रदेश में भी अपना प्रभाव खोती जा रही है। ऐसे में मायावती ने एक बार फिर पार्टी की कमान संभाली है और संगठन को मजबूती देने के लिए लंबे समय बाद ओबीसी नेताओं की बैठक बुलाई है।

बसपा छोड़ रहे हैं बड़े नेता

उत्तर प्रदेश में बसपा का प्रभाव घटने के कारण कई बड़े नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। कभी बसपा देश की तीसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी थी, लेकिन अब इसका प्रभाव तेजी से कम हो रहा है। सोनेलाल पटेल, स्वामी प्रसाद मौर्य, राम अचल राजभर और दारा सिंह चौहान जैसे बड़े नेता मायावती के काम करने के तरीके से असंतुष्ट होकर पार्टी से दूर हो गए हैं।

पार्टी को मजबूत करने के लिए मायावती की नई रणनीति

लखनऊ में बसपा से जुड़े ओबीसी नेताओं से पार्टी को जनसंपर्क बढ़ाने की अपील की गई है। पार्टी को मजबूत बनाने के लिए हर जिले में भाईचारा कमेटी बनाने की योजना बनाई जा रही है। इस कमेटी में दलितों और लोधी समुदाय के साथ-साथ निषाद, राजभर, सैनी, शाक्य और मौर्य जैसी पिछड़ी जातियों को प्राथमिकता दी जा रही है। मायावती की इस नई रणनीति को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हैं, लेकिन यह रणनीति बसपा को कितनी मजबूती देगी, यह समय ही बताएगा।

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