लखनऊ: आगरा के तेढ़ी बग़िया इलाक़े में 25 फ़रवरी को समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं की भीड़ लगी हुई थी. इस दिन अखिलेश यादव और राहुल गांधी को इंडिया गठबंधन की यूपी में पहली साझा रैली करनी थी. जगह-जगह अखिलेश यादव और पीडीए के बड़े-बड़े बैनर ये स्पष्ट कर रहे थे कि यूपी […]
लखनऊ: आगरा के तेढ़ी बग़िया इलाक़े में 25 फ़रवरी को समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं की भीड़ लगी हुई थी. इस दिन अखिलेश यादव और राहुल गांधी को इंडिया गठबंधन की यूपी में पहली साझा रैली करनी थी. जगह-जगह अखिलेश यादव और पीडीए के बड़े-बड़े बैनर ये स्पष्ट कर रहे थे कि यूपी में पीडीए ही इंडिया गठबंधन का नारा है. यहां के मंच पर राहुल गांधी से क़रीब 10 मिनट पहले अखिलेश यादव पहुंचे. अखिलेश यादव के पहुंचते ही सपा के कार्यकर्ताओं ने मंच को घेर लिया और सेल्फी खिंचाने के लिए अखिलेश के क़रीब पहुंचने की होड़ सी मच गई.
यहां कुछ उत्साही कार्यकर्ताओं ने मंच की रैलिंग को लांघने की कोशिश की और कई लोगों ने अखिलेश यादव को छू लिया. इस दौरान अखिलेश यादव बार-बार मुस्काराते हुए कार्यकर्ताओं की तरफ इशारा करके शांत होने की अपील करने लगे. यहां एक महिला कार्यकर्ता पुलिस के धकेलने के बावजूद तब तक रेलिंग पर डटी रही जब तक अखिलेश के साथ सेल्फ़ी नहीं खिंचा ली. इस दौरान बाहर की गर्मी से राहत लेते हुए पत्रकार पीडीए की एसी बस में बैठकर ये नज़ारा देख रहे थे.
अखिलेश की झलक पाने के लिए बस में खड़ी पार्टी की एक महिला नेता भीड़ के बीच जैसे ही अखिलेश यादव की झलक मिली तो उनके मुंह से निकला कि आज अखिलेश जी बिल्कुल नेताजी जैसे लग रहे हैं. अखिलेश यादव के लुक की तुलना उनके पिता मुलायम सिंह यादव से महिला कर रही थीं. अब लोकसभा चुनाव 2024 में यूपी में 37 सीटें समाजवादी पार्टी के जीतने और अपने इतिहास के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तक पहुंचने के बाद अखिलेश यादव के राजनीतिक कदम की तुलना उनके पिता मुलायम सिंह यादव से की जाने लगी है.
हालांकि राजनीतिक विश्लेषक से जुड़े लोग ये मान रहे हैं कि अखिलेश यादव को अभी मुलायम सिंह के बराबर पहुंचने में बहुत लंबा सफ़र तय करना है. तेढ़ी बगिया की रैली में बड़ी तादाद में मौजूद पार्टी के दलित कार्यकर्ता ये इशारा ज़रूर कर रहे थे कि अखिलेश की राजनीति अब बदल रही है, लेकिन उसे समझना इतना भी आसान नहीं था. उत्तर प्रदेश की राजनीति में सपा को दलितों की बसपा के विरोधी के रूप में देखा जाता रहा है, हालांकि एक साथ गठबंधन में दोनों पार्टियां चुनाव भी लड़ चुकी हैं.
इस रैली में मौजूद एक दलित कार्यकर्ता ने कहा था कि सपा अब सही लाइन पकड़ी है, हम जैसे दलित कार्यकर्ताओं को भी इसमें सम्मान मिल रहा है, दलितों के बीच हम संविधान लेकर जा रहे हैं और ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि सपा में दलितों के लिए भी जगह है.
तब चुनावों में वक़्त था. पीडीए यानी पिछड़ा, दलित और अन्य भी समझा जा सकता है, क्योंकि अब अधिकतर सपा नेता यानी अल्पसंख्यक ही बोल रहे हैं कि एक साथ लाना आसान काम नहीं दिख रहा था.
22 जनवरी को अयोध्या में हुए राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से ऐसा लगा था कि इस चुनाव में कम से कम यूपी में ये बड़ा मुद्दा बनेगा, लेकिन इस रैली के लगभग साढ़े तीन महीनों बाद आए चुनाव नतीजों ने ये स्पष्ट कर दिया कि सपा और कांग्रेस के साथ उनका इंडिया गठबंधन दलित वोटरों को अपनी तरफ़ खींचने में कामयाब रहा है. अयोध्या में हिंदुत्व का प्रतीक बनी दलित उम्मीदवार अवधेश प्रसाद सपा के टिकट पर जीत गए हैं. वहीं राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि इस चुनाव में अखिलेश यादव का पीडीए का नारा और राहुल गांधी का संविधान हाथ में लेकर रैलियां करना सबसे बड़ा गेमचेंजर साबित हुआ है.
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