दार्जिलिंग के रहने वाले 1991 बैच के आईपीएस अफसर दावा शेरपा को हाल में गोरखपुर का एडीजी बनाया गया. दावा शेरपा 2008 से 2012 तक नौकरी से गायब रहे. वह राजनीति में अपनी किस्मत आजमाने के लिए अपने गृह जिले चले गए थे. शेरपा बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन टिकट नहीं मिला. राजनीति रास नहीं आई तो साल 2012 में वह उत्तर प्रदेश वापस लौटे और राज्य सरकार ने उन्हें DIG बना दिया.
लखनऊः उत्तर प्रदेश में अफसरशाही के मनमाने रवैये से योगी सरकार भी सकते में है. दरअसल हाल में गोरखपुर को नया एडीजी मिला है. चार साल तक नौकरी से गायब रहने वाले एक आईपीएस अफसर को जब राज्य सरकार ने गोरखपुर का एडीजी बनाया तो सत्ता और अफसरशाही के खेल और सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे. इंडिया टुडे ग्रुप की खबर के अनुसार, दार्जिलिंग के रहने वाले 1991 बैच के आईपीएस अफसर दावा शेरपा को हाल में गोरखपुर का एडीजी बनाया गया. दावा शेरपा 2008 से 2012 तक नौकरी से गायब रहे. वह राजनीति में अपनी किस्मत आजमाने के लिए अपने गृह जिले चले गए थे.
शेरपा बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन 2009 में हुए चुनाव में उन्हें टिकट नहीं मिला. जिसके बाद शेरपा अखिल भारतीय गोरखा लैंड लीग में शामिल हुए और राज्य स्तर पर राजनीति में सक्रिय हो गए. गृह विभाग के सूत्रों के मुताबिक, दावा शेरपा ने यूपी छोड़ने से पहले वीआरएस के लिए आवेदन दिया था लेकिन न ही उनका इस्तीफा मंजूर हुआ और न ही उन्हें वीआरएस दिया गया. शेरपा को जब राजनीति रास नहीं आई तो 2012 में वह फिर से यूपी वापस लौटे और राज्य सरकार ने उन्हें बतौर डीआईजी ज्वॉइन कराया. अखिलेश सरकार में शेरपा आईजी और फिर एडीजी भी बने.
इस बारे में जब हुक्मरानों से सवाल किया गया तो बीजेपी प्रवक्ता मनीष शुक्ला ने कहा कि जिस समय दावा शेरपा ने इस्तीफा देते हुए वीआरएस के लिए आवेदन किया था उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी और राज्य में बसपा सरकार थी. उनका इस्तीफा क्यों मंजूर नहीं हुआ वह नहीं बता सकते. राज्य सरकार ने केवल उनकी पोस्टिंग की है. 4 साल गायब रहने के बाद उनकी फिर से बहाली को लेकर मामला अब संज्ञान में आया है तो जांच जरूर होगी. बताते चलें कि हाल में जिस तरह से योगी सरकार के अफसरों ने सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हुए सरकार की ही किरकिरी की है इससे उन आशंकाओं को बल मिल रहा है कि क्या सरकार और अफसरों के बीच तालमेल नहीं बैठ पा रहा है?
हाल में कासगंज हिंसा को लेकर बरेली के डीएम राघवेंद्र विक्रम सिंह की एक फेसबुक पोस्ट पर बवाल मच गया था. सहारनपुर की डिप्टी डायरेक्टर (सांख्यिकी) रश्मि की तिरंगा यात्रा को लेकर लिखी गई पोस्ट भी खासा हंगामा हुआ. सरकार ने दोनों ही अफसरों से जवाब तलब किया. ताजा मामला अमेठी के एक पीसीएस अफसर की फेसबुक पोस्ट का है जिन्होंने सरकार की ओर से आयोजित होने वाली लंबी-चौड़ी बैठकों पर लिखा था. उन्होंने लिखा था कि अगर इतनी मीटिंग होगी तो काम कब होगा? गौरतलब है कि सोशल मीडिया पर अपना दरर्द उकेर रहे अफसरों की पोस्ट देखकर तो ऐसा ही लगता है कि वह सरकार की कार्यशैली से खुश नहीं है. इस मामले में विपक्ष भी अफसरों के साथ खड़ा नजर आ रहा है. विपक्ष का मानना है कि अफसरों ने कोई गलती नहीं की है. प्रशासन का सांप्रदायिकरण करके यह गलती सरकार कर रही है.
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