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भव्य महाकुंभ के मेले में अखाड़ा और पेशवाई का क्या योगदान होता है ?

भव्य महाकुंभ के मेले दुनियाभर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस दौरान त्रिवेणी संगम पर आस्था का मनोहर नजारा देखने को मिलता है। महाकुंभ में साधु-संत भी पहुंचते हैं, जिनके बिना यह आयोजन अधूरा है। साधु-संतों के जुलूस के बाद ही महाकुंभ का शाही स्नान शुरू होता है।

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भव्य महाकुंभ के मेले में अखाड़ा और पेशवाई का क्या योगदान होता है ?
  • December 18, 2024 11:13 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 hours ago

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में भव्य महाकुंभ का आयोजन होने जा रहा है, जिसकी तैयारियां जोरों पर हैं। महाकुंभ 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा के दिन शुरू होगा और 26 फरवरी 2025 महाशिवरात्रि तक 45 दिनों तक चलेगा, जिसमें दुनियाभर से श्रद्धालु पहुंचते हैं। इस दौरान त्रिवेणी संगम पर आस्था का मनोहर नजारा देखने को मिलता है। महाकुंभ में साधु-संत भी पहुंचते हैं, जिनके बिना यह आयोजन अधूरा है। साधु-संतों के जुलूस के बाद ही महाकुंभ का शाही स्नान शुरू होता है।महाकुंभ में अखाड़ों का जुलूस निकलता है, जिसमें हाथी-घोड़ों पर सवार होकर अखाड़ों के शाही जुलूस निकाले जाते हैं। आइए जानते हैं महाकुंभ में शाही जुलूस का नेतृत्व कौन करता है और शाही सवारी की अनुमति किसे है।

अखाड़ा किसे कहते है

सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि महाकुंभ में अखाड़ा क्या है। क्योंकि यह एक ऐसा शब्द है जो महाकुंभ के दौरान खूब सुनने को मिलता है। अखाड़ा शब्द सुनते ही हमारे दिमाग में आमतौर पर कुश्ती का ख्याल आता है। लेकिन महाकुंभ में अखाड़े साधु-संतों के समूह को कहते हैं। दरअसल, आदि गुरु शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में सनातन जीवनशैली की रक्षा के लिए तपस्वियों के संगठन को एकजुट करने का प्रयास किया और उन्हें अखाड़े का नाम दिया। अखाड़ों की स्थापना का उद्देश्य सनातन धर्म की रक्षा करना था। अखाड़े के साधु-संत और संन्यासी शास्त्रों के साथ-साथ शास्त्र (शस्त्र) के भी अच्छे जानकार होते हैं।

महाकुंभ में पेशवाई 

प्रयागराज में होने वाले महाकुंभ के इस विशाल धार्मिक आयोजन में लाखों की संख्या में साधु-संत और अखाड़े भाग लेते हैं। लेकिन इस विशाल धार्मिक आयोजन में साधु-संतों का जुलूस आकर्षण का केंद्र होता है। महाकुंभ तक पहुंचने के लिए साधु-संत अपने अखाड़ों से भव्य जुलूस निकालते हैं जिसे पेशवाई कहते हैं।

जुलूस में क्या होता है

जुलूस में बैंड होता है, हाथी-घोड़े सजाए जाते हैं और रथों पर शाही जुलूस निकाला जाता है। रथों में पूज्य गुरु या संत या महंत बैठते हैं। श्रद्धालु या अनुयायी नाचते-गाते चलते हैं। महाकुंभ की पेशवाई में अखाड़ों के प्रमुख महंत, नागा साधु और श्रद्धालु या अनुयायी शामिल होते हैं। महाकुंभ की पेशवाई को अखाड़ों की भव्यता, शक्ति और अनुशासन का प्रदर्शन माना जाता है। पेशवाई देखने के लिए श्रद्धालु संगम नगरी पहुंचते हैं।

 

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