लखनऊ : इस समय उत्तर प्रदेश की सत्ता निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण को लेकर गरमाई हुई है. जहां राज्य सरकार ने बिना ओबीसी आरक्षण के ही निकाय चुनाव को अंजाम देने वाले इलाहबाद हाई कोर्ट के फैसले से असंतुष्ट होकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. दरअसल 27 दिसंबर को इलाहबाद हाई कोर्ट की […]
लखनऊ : इस समय उत्तर प्रदेश की सत्ता निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण को लेकर गरमाई हुई है. जहां राज्य सरकार ने बिना ओबीसी आरक्षण के ही निकाय चुनाव को अंजाम देने वाले इलाहबाद हाई कोर्ट के फैसले से असंतुष्ट होकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. दरअसल 27 दिसंबर को इलाहबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने इस संबंध में अपना फैसला सुनाया था और राज्य सरकार के सभी तर्कों को गलत ठहराते हुए कहा था कि राज्य सरकार ने साल 2017 में स्थानीय निकाय चुनाव मामले में हुए ओबीसी आरक्षण तय ट्रिपल टेस्ट फॉर्म्यूला से नही किया है.
इसी को लेकर इस समय प्रदेश में राजनीति तेज हो गई है. सभी पार्टियां ओबीसी आरक्षण को लेकर योगी सरकार पर निशाना साध रही है ऐसा इसलिए क्योंकि प्रदेश की राजनीती में ओबीसी वोट बैंक बेहद मायने रखता है. लेकिन उत्तर प्रदेश की सत्ता में ओबीसी या अनुसूचित जाती और जनजातियों की यह अहमियत हमेशा से नहीं थी. ओबीसी आरक्षण भी इतना बड़ा मुद्दा नहीं हुआ करता था. सबसे पहले प्रदेश में कांशीराम ने ओबीसी वर्ग की ताकत को समझा था.
अतिपिछड़ी वर्ग के अलग-अलग जातियों के नेताओं को बसपा संगठन से लेकर सरकार तक में कांशीराम ने प्रतिनिधित्व दिया था. मौर्य, कुशवाहा, नाई, पाल, राजभर, नोनिया, बिंद, मल्लाह, साहू जैसे समुदाय के नेता इसमें शामिल थे. ये सभी समुदाय एक साथ मिलकर बहुजन समाज पार्टी की ताकत बने. साल 2007 के चुनावों में बसपा को इन्हीं की बदौलत पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ. इसके बाद यह वोट बैंक पार्टी से छिटकता गया और साल 2014 आने तक उनके हाथों से पूरी तरह से निकल गया.
अतिपिछड़ी जातियों के नेता खुद पार्टी छोड़ दिया करते. फिर मायावती ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया. इसके बाद कांशीराम की छत्रछाया में पले पढ़े यह नेता जो सियासी प्रयोग से निकले थे भाजपा, कांग्रेस से जा जुड़े. ये सभी नेता इन पार्टियों में अहम भूमिका में है. ऐसे में अब मायावती दोबारा से अतिपिछड़ा वर्ग का मत अपनी ओर करने निकली हैं. इसी कड़ी में उन्होंने विश्वनाथ पाल को पार्टी की कमान सौंपी है.
दरअसल मंडल कमीशन के बाद उत्तर प्रदेश की सियासत ओबीसी समुदाय के आस-पास सिमट गई है. ओबीसी को केंद्र में रखते हुए सूबे की सभी पार्टियां अपनी राजनीतिक एजेंडा सेट कर रही हैं. उत्तर प्रदेश में पिछड़ा वर्ग सबसे बड़ा वोटबैंक है जहां सूबे में 52 फीसदी पिछड़ा वर्ग की आबादी है, जिसमें 43 फीसदी गैर-यादव बिरादरी का है.ऐसे में ओबीसी में 79 जातियां हैं, जिनमें पहली यादव और दूसरी कुर्मी है.
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