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सबरीमाला मंदिर केसः अयप्पा सेवा संघम की ओर से पेश वकील ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- हम केरल में एक और अयोध्या नहीं चाहते

केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है. गुरुवार को छठे दिन भी मामले में सुनवाई की गई. इस दौरान वरिष्ठ वकील कैलाशनाथ पिल्लई ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि अदालत को धर्म के मामलों की न्यायिक समीक्षा बेहद सावधानी से करनी होगी. हम केरल में एक और अयोध्या नहीं चाहते.

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Sabrimala temple Ayodhya Supreme court
  • July 27, 2018 6:18 am Asia/KolkataIST, Updated 6 years ago

नई दिल्लीः केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर छठे दिन भी सुनवाई की गई. इस दौरान त्रावणकोर पंडालम राज परिवार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील के. राधाकृष्णन ने कहा कि यह याचिका हिन्दू धर्म को नुकसान पहुंचाने के मकसद से दाखिल की गई है. कल यह लोग ऐसी याचिका भी दाखिल कर सकते हैं कि भगवान गणेश शिव पार्वती के पुत्र हैं ही नहीं. अयप्पा सेवा संघम की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील कैलाशनाथ पिल्लई ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि कोर्ट को धर्म के मामलों की न्यायिक समीक्षा काफी सावधानी से करनी होगी. हम केरल में एक और अयोध्या नहीं चाहते.

सुनवाई के दौरान वकील के. राधाकृष्णन ने कहा कि ऐसे लोगों (याचिकाकर्ताओं) ने हिन्दू धर्म को निशाने पर लिया हुआ है. कोर्ट को ऐसे धार्मिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए, जिसका लोग पीढ़ियों से पालन करते आए हैं. उन्होंने आगे कहा कि याचिकाकर्ता की भगवान अयप्पा में कोई रुचि नहीं है. यह याचिका महज मंदिर की गरिमा पर हमला करने के लिए दाखिल की गई है.

के. राधाकृष्णन ने मंदिर की 18 पवित्र सीढ़ियों का जिक्र करते हुए कहा कि इन पर चढ़ने वालों को 41 दिन का संकल्प करना होता है. यह सब अयप्पा स्वामी की मर्जी से होता है. हिन्दू धर्म में सभी देवताओं का अपना चरित्र है. केवल अयप्पा मंदिर में ही नहीं बल्कि देश के अलग-अलग मंदिरों में अपनी-अपनी परंपरा का चलन है. संविधान के अनुच्छेद-25 में जो नैतिकता का जिक्र है उसमें ‘लोक’ शब्द लगाना चाहिए ताकि इसे ‘लोक नैतिकता’ के संदर्भ में समझा जाए.

मुख्य पुजारी की ओर से पेश वरिष्ठ वकील वी. गिरी ने कहा कि मूर्ति पूजा हिन्दू धर्म का सार और आधार है. देवताओं की पूजा शास्त्रों के मुताबिक होती है. हर एक देवता का अपना अलग अनूठा और विशिष्ट चरित्र होता है. उन्होंने आगे कहा कि हर मंदिर की अपनी अलग परम्पराएं हैं जिसको सुरक्षित और संरक्षित रखने की जरूरत है. हिन्दू धर्म में मूर्ति की स्थापना के साथ ही देवताओं की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है और उन्हें जीवित देवता के तौर पर पूजा जाता है.

वरिष्ठ वकील वी. गिरी ने आगे कहा कि केरल हाईकोर्ट ने भी माना था कि तन्त्री यानी मुख्य पुजारी ही देवता के गार्जियन और गुरु हैं. उस तरह मंदिर के रीति-रिवाज में इनका आदेश और विचार ही अंतिम होता है. लिहाजा मंदिर की परंपराओं का सम्मान होना चाहिए. गिरी ने कहा कि मंदिर में प्रवेश करने वालों को देवता में विश्वास रखना होगा. इन्हें यह भी मानना होगा कि अयप्पा स्वामी ब्रह्मचारी हैं. यही उनका मूल चरित्र है. लिहाजा इस आस्था को मानना होगा. संविधान के अनुच्छेद-25 A के तहत प्रवेश करने वालों को देवता का मूल चरित्र समझना होगा.

बताते चलें कि सबरीमाला मंदिर मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय पीठ कर रही है. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि इस मुद्दे में हम केवल संवैधानिक पहलुओं पर सुनवाई करेंगे और कुछ नहीं. इस दौरान पीपुल फॉर धर्म और एनजीओ चेतना की ओर से पेश हुए वकील साई दीपक ने भी अपना पक्ष रखा. उन्होंने अदालत से कहा कि इस मामले में दोनों पक्षों से सबूत मांगे जाने चाहिए ताकि अदालत किसी निष्कर्ष तक पहुंच सके. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने वकील साई दीपक की दलीलें सुनने के बाद कहा, ‘आपका तर्क प्रभावशाली है, मैं इसे स्वीकार करता हूं.’ शुक्रवार को भी इस मामले में सुनवाई जारी रहेगी.

क्या है मामला?
केरल के त्रावणकोर में स्थित सबरीमाला मंदिर में अयप्पा स्वामी की पूजा होती है. यहां 10 साल से 50 साल तक की महिलाएं, जो रजस्वला यानी जिन्हें मासिक धर्म होते हैं, उनके प्रवेश पर पाबंदी है. इसके पीछे मान्यता है कि मंदिर के मुख्य देवता स्वामी अयप्पा ब्रह्मचारी थे. ऐसे में इस तरह की महिलाओं के मंदिर में जाने से उनका ध्यान भंग होगा. महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर रोक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है, जिस पर सुनवाई जारी है.

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