नई दिल्ली : वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर देश में राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है। वन नेशन वन इलेक्शन पर गठित कोविंद कमेटी को मोदी कैबिनेट से मंजूरी मिलते ही विपक्षी दल आक्रामक हो गए हैं। वहीं विपक्ष ने कमेटी द्व्रार पेश किये गए रिपोर्ट को पूर्ण बहिष्कार किया यानि उनका इस पर समर्थन […]
नई दिल्ली : वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर देश में राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ है। वन नेशन वन इलेक्शन पर गठित कोविंद कमेटी को मोदी कैबिनेट से मंजूरी मिलते ही विपक्षी दल आक्रामक हो गए हैं। वहीं विपक्ष ने कमेटी द्व्रार पेश किये गए रिपोर्ट को पूर्ण बहिष्कार किया यानि उनका इस पर समर्थन नहीं हैं। इस बीच कोविंद कमेटी की रिसर्च और रिपोर्ट सामने आई है। इस रिपोर्ट में उन देशों का जिक्र है, जहां वन नेशन वन इलेक्शन की नीति लागू है, यानी एक ही समय पर चुनाव हो रहे हैं।
कोविंद कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार , दक्षिण अफ्रीका में मतदाता नेशनल असेंबली और प्रांतीय एमएलए के लिए एक साथ वोट करते हैं।
स्वीडन में भी वन नेशन वन इलेक्शन के जरिए संसद, काउंटी और नगर परिषद के चुनाव एक साथ होते हैं।
बेल्जियम में भी संघीय संसद के चुनाव यूरोपीय संघ के चुनावों के साथ ही होते हैं।
जर्मनी की संसद के निचले सदन यानी बुंडेसटाग, राज्य विधानसभा और स्थानीय निकाय के चुनाव एक साथ कराने की व्यवस्था है।
फिलीपींस में भी राष्ट्रीय और स्थानीय पदाधिकारियों के चुनाव हर तीन साल में एक साथ होते हैं।
इंडोनेशिया ने हाल ही में वन नेशन वन इलेक्शन को अपनाया है। इस साल फरवरी 2024 में राष्ट्रपति, संसद, क्षेत्रीय विधानसभा और नगर पालिका के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे।
वन नेशन वन इलेक्शन को मंजूरी मिलने के बाद देश की 543 लोकसभा सीटों और सभी राज्यों की कुल 4130 विधानसभा सीटों पर एक साथ चुनाव का रास्ता खुल गया है। वन नेशन वन इलेक्शन से मतदाता एक ही दिन, एक ही समय पर सांसद और विधायक चुनने के लिए वोट डालेंगे। केंद्र सरकार के मंत्रियों समेत तमाम बीजेपी नेता वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन कर रहे हैं और कह रहे हैं कि इससे काफी पैसे बचेंगे।
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