नई दिल्ली : क्या मनुष्य के राख से बगीचा तैयार किया जा सकता हैं ? इस सवाल का जवाब देते समय आप गहरी सोच में डूब जाएंगे। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के भदभदा में विश्रामघाट पर कुछ ऐसी घटना घाटी है। चलिए थोड़ा फ्लैशबैक में चलते हैं… कोरोना का वो भयावह मंजर तो सभी को याद होगा, क्योंकि तब सांसें बहुत महंगी थीं। हर दिन अस्पतालों से कई शव विश्रामघाट लाए जा रहे थे। लोग अपने परिजनों की चिता खुद नहीं जला पा रहे थे. लोग दूर से ही अंतिम विदाई दे रहे थे। कोरोना काल के 2 साल में हर दिन कुछ ऐसा ही नजारा कई बार देखने को मिलता था . इस दौरान भदभदा विश्राम घाट पर लगभग 7 हजार शवों का अंतिम संस्कार किया गया था। यहीं से श्मशान घाट में जिंदगी की शुरुआत हुई…
भदभदा में विश्रामघाट पर कोरोना काल में शवों के अंतिम संस्कार के बाद कुछ रिश्तेदार अपनों की अस्थियां और राख लेने नहीं आए और जो आए वो सिर्फ अस्थियां लेकर चले गए, राख छोड़कर। ऐसे में भदभदा विश्रामघाट समिति की चिंता बढ़ती जा रही थी, क्योंकि यहां 21 डंपर राख और अस्थियां जमा हो गई थीं। समिति ने इस दौरान अपना फर्ज बखूबी निभाया। अस्थियों को पवित्र नदियों में विसर्जित किया गया। वहीं 21 डंपर राख का क्या किया जाए, यह बड़ा सवाल था।
तब समिति के सदस्यों ने सोचा कि क्यों न विश्रामघाट में एक जंगल तैयार किया जाए। जहां इस राख का उपयोग भी होगा और पूर्वजों की स्मृति भी बरकरार रहेगी। फिर 12 हजार वर्ग फीट जमीन पर स्मृतियों को संजोने का काम शुरू हुआ। इसे नाम दिया गया- राम स्मृति वन। राख, गोबर और चूरा को मिट्टी में मिलाकर खाद बनाई गई और 175 प्रजातियों के 5700 पौधे रोपे गए। ये पौधे मियावाकी पद्धति से रोपे गए। इनमें से कई अब पेड़ बन गए हैं। कुछ की लंबाई 25 फीट तक पहुंच गई है। इसे पूर्वजों का आशीर्वाद ही मानें कि यहां लगा कोई भी पेड़ सूखा नहीं है। समिति अध्यक्ष का कहना हैं कि कोरोना काल में अपनों की स्मृतियों को संजोने के लिए यह जंगल विकसित किया गया। पितृ पक्ष में लोग यहां अपनों की याद में पौधे लगाने आ रहे हैं। इसके लिए उन्हें इस जंगल के पास जगह उपलब्ध कराई जा रही है।
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