पटना: एक तरफ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव प्रदेश में सुशासन होने का दावा करते है। कहते हैं कि सरकार की मदद हर तबके के लोगों तक पहुंच रही हैं। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। बेशक भारत 21वीं सदी में जी रहा है लेकिन आज भी लोग 6-6 महीने बिना […]
पटना: एक तरफ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव प्रदेश में सुशासन होने का दावा करते है। कहते हैं कि सरकार की मदद हर तबके के लोगों तक पहुंच रही हैं। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और है। बेशक भारत 21वीं सदी में जी रहा है लेकिन आज भी लोग 6-6 महीने बिना बिजली के अंधेरे में रहने को मजबूर हैं।
आपको जानकर हैरानी होगी, लेकिन ये हाल गया जिले के पिचुलिया गांव का है। इस शहर में बिजली के खंभे हैं, केबल हैं, ट्रांसफार्मर हैं लेकिन बिजली गुल है। पहले दो साल गांव वालों को बिजली मिली, लेकिन बीते 6 माह से बिजली काटी जा रही है, लेकिन इन बेसहारा लोगों की सुनने वाला कोई नहीं है। आइए आपको पूरा मामला विस्तार से बताते हैं:
➨ साल 2019 में मुहैया हुई बिजली
हालांकि 2019 में गया जिले के पिचुलिया गांव में बिजली पहुंची, लेकिन सिर्फ 2022 तक लोगों को बिजली का फायदा मिला। इस दौरान कई बार ट्रांसफार्मर जल गया और ग्रामीणों ने अपने चंदे से इसे बनवाया। छह माह पहले एक बार फिर ट्रांसफार्मर जल गया। अब ग्रामीणों के पास ट्रांसफार्मर बनाने के लिए पैसे नहीं हैं और न ही बिजली विभाग को ग्रामीणों की सुध है। गांव में करीब एक हजार लोग रहते हैं, जो 6 माह से अंधेरे में रहने को मजबूर हैं।
एक ओर चिलचिलाने वाली गर्मी के कारण लोग परेशान हैं तो दूसरी ओर बिजली नहीं होने से लोगों को पानी तक नहीं मिल पा रहा है। बिजली न होने के कारण नल का पानी भी छह माह से नहीं चल रहा है। लोग दूसरे गांवों से पानी लाकर पीने को मजबूर हैं। वहीं, बिजली विभाग के अधिकारियों का भी ढूलमूल रवैया देखने को मिल रहा है। उनका कहना है कि जब गांव के लोग कनेक्शन लेना चालू करेंगे तो शहर की बिजली व्यवस्था सुचारु हो जाएगी।
…. भले ही सरकार गांव-गांव में विकास यात्रा निकाल कर ग्रामीण विकास के खोखले दावे कर रही है, लेकिन धरातल पर हकीकत ग्रामीण विकास के दावों की पोल खोल रही है। ऐसे में न तो सरकार और न ही प्रशासन को इस बात की सुध है। चुनावी दौड़ की तैयारी कर रहे जनप्रतिनिधि अगर उन लोगों पर भी ध्यान दें जिनके लिए वे सत्ता में हैं तो शायद बिहार के ऐसे दिन बदल जाएं।