Delhi: दशकों पुरानी है दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल के बीच दबदबे की लड़ाई, जानिए

नई दिल्ली: गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल की लड़ाई में ऐतिहासिक फैसला दिया है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कर दिया है कि चुनी हुई सरकार ही दिल्ली की नौकरशाही चलाएगी। अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग पर भी दिल्ली सरकार ही फैसला करेगी. इस फैसले को चीफ जस्टिस […]

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Delhi: दशकों पुरानी है दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल के बीच दबदबे की लड़ाई, जानिए

Riya Kumari

  • May 11, 2023 4:29 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली: गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल की लड़ाई में ऐतिहासिक फैसला दिया है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कर दिया है कि चुनी हुई सरकार ही दिल्ली की नौकरशाही चलाएगी। अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग पर भी दिल्ली सरकार ही फैसला करेगी. इस फैसले को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने दिया है जिन्होंने कहा कि लोकतंत्र और संघीय ढांचा संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं .

कैसे उपराज्यपाल बना दिल्ली का बॉस?

हालांकि दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं के नियंत्रण और अधिकार से जुड़ी सरकार बनाम उपराज्यपाल की लड़ाई नई नहीं है. बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले को सुनाते हुए कहा कि दिल्ली की पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर पर केंद्र का अधिकार है लेकिन अन्य मामलों पर सरकार का ही अधिकार होगा. ऐसे में ये जान लेना भी जरूरी है कि आखिर दिल्ली बनाम उपराज्यपाल के ये विवाद किस तरह खड़ा हुआ और आखिर वो कौन सा कानून है जिसने दिल्ली का राजा उपराज्यपाल को बना दिया?

 

दिल्ली क्या है?

– अंग्रेजों ने 12 दिसंबर 1931 को दिल्ली को ब्रिटिश इंडिया की राजधानी घोषित किया था जिसके बाद राज्यों को तीन हिस्सों- पार्ट A, पार्ट B और पार्ट C में विभाजित किया गया. राष्ट्रीय राजधानी को पार्ट C में रखा गया जो आजादी के बड़ा देश की राजधानी बनी.

– दिल्ली में पहले विधानसभा चुनाव सन 1952 में हुए जब दिल्ली एक पूर्ण राज्य हुआ करती थी. दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री चौधरी बलराम प्रकाश यादव बने जो 1952 ले 1955 तक इस पद पर थे. एक साल के लिए गुरमुख निहाल सिंह उनके बाद मुख्यमंत्री बने.

– दिल्ली को बदल देने वाला राज्य पुनर्गठन कानून 1956 में आया जिससे राज्यों का बँटवारा हुआ. इसी में दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश बन गई और यहां की विधानसभा भंग कर दी गई. राजधानी में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ जो आगे 35 साल तक चला.

 

फिर मिला दिल्ली को ‘खास’ दर्जा

– इसके बाद सन 1991 में संविधान में कुछ संशोधन किए गए जिसके बाद दिल्ली पूरी तरह से राज्य तो नहीं बनी लेकिन इसे एक ख़ास दर्ज़ा दिया गया.

– संविधान में 69वां संशोधन हुआ और दिल्ली ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र’ यानी ‘नेशनल कैपिटल टेरेटरी’ बनी. दिल्ली को कैपिटल टेरेटरी बनाने के लिए गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरेटरी एक्ट (GNCTD) 1991 बनाया गया.

– धारा 239AA को संविधान में जोड़ा गया जिसके तहत कैबिनेट का प्रावधान किया गया. इसमें गवर्नर को ‘लेफ्टिनेंट गवर्नर’ का नाम दिया गया साथ ही कैबिनेट और LG के कामों का बटवारा किया गया. इस धारा में एक ऐसा भी प्रावधान था जिसके अनुसार यदि किसी कारण से दिल्ली सरकार और LG के बीच विवाद होता है तो राष्ट्रपति का फैसला मान्य होगा.

 

वो कानून, जिस पर होता रहा विवाद

दरअसल दिल्ली में साल 1991 से लेकर 2013 तक काम ठीकठाक चलता रहा. हालांकि, कई ऐसी राजनीतिक पार्टियां आईं जिन्होंने दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने की मांग की. दिल्ली में 2013 में जब अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की सरकार आई तो उसके बाद उपराज्यपाल से टकराव बढ़ने लगा. इसी टकराव को दूर करने के लिए आप सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. साल 2018 में पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने फैसला सुनाया था कि पुलिस, जमीन और पब्लिक ऑर्डर को छोड़कर बाकी सभी मामलों पर दिल्ली सरकार को कानून बनाने और काम करने का अधिकार है.

 

हालांकि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके सिकरी और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने 14 फरवरी 2019 को जो फैसला सुनाया वो अलग-अलग थे.

दोनों जजों के फैसले अलग

– जस्टिस ए के सीकरी के अनुसार दिल्ली सरकार को सरकारी अफसरों पर नियंत्रण मिलना चाहिए. हालांकि उन्होंने जॉइंट सेक्रेट्री या उससे ऊपर के अधिकारियों पर केंद्र सरकार का नियंत्रण होने की बात कही थी. उपराज्यपाल के हिस्से उनकी ट्रांसफर-पोस्टिंग आने की बात भी कही गई थी और इससे नीचे के अधिकारियों का नियंत्रण दिल्ली सरकार के हाथों में देने के लिए कहा गया था.

– दूसरी ओर जस्टिस अशोक भूषण ने कहा था- दिल्ली केंद्रशासित राज्य है, इसलिए जो अधिकारी केंद्र ने भेजे हैं उसपर दिल्ली सरकार को नियंत्रण देना ठीक नहीं है. इसके बाद 2021 में केंद्र सरकार ने GNCTD बिल पेश किया जिसमें 1991 के कानून में कुछ खामियों को दूर करने का हवाला देते हुए संशोधन के जरिए नया कानून बनाया गया.

GNCTD एक्ट में क्या है?

– पुराने कानून में चार संशोधन कर केंद्र सरकार ने इस कानून की धारा 21, 24, 33 और 44 में बदलाव किया गया था. धारा 21 में कहा गया कि विधानसभा कोई भी कानून बनाएगी तो उसे सरकार की बजाय ‘उपराज्यपाल’ का फैसला माना जाएगा. इस संशोधन के बाद दिल्ली के उपराज्यपाल को और अधिक शक्तियां दी गई थीं. जिसके तहत दिल्ली सरकार की कैबिनेट को कोई भी फैसला लागू करने से पहले LG की राय लेनी जरूरी थी. हालांकि कानून पास करने के बाद उसे उपराज्यपाल के पास भेजा जाता था. इसी एक प्रावधान ने दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच विवाद को जन्म दिया. इसके अलावा इसमें ये भी प्रावधान किया गया कि दिल्ली की कैबिनेट प्रशासनिक मामलों से जुड़े फैसले नहीं ले सकती.

 

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