मुंबई: महाराष्ट्र में शिंदे-ठाकरे विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पूरी हो गई है। आपको बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस मामलेमे अब कोर्ट दलीलें नहीं सुनेगा। अब इस विवाद का सीधे फैसला आएगा। महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट पर नौ महीने तक सुनवाई चली। अब फैसले […]
मुंबई: महाराष्ट्र में शिंदे-ठाकरे विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पूरी हो गई है। आपको बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस मामलेमे अब कोर्ट दलीलें नहीं सुनेगा। अब इस विवाद का सीधे फैसला आएगा। महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट पर नौ महीने तक सुनवाई चली।
अब फैसले का इंतजार है। ठाकरे गुट की ओर से कपिल सिब्बल ने सुनवाई शुरू की थी। इसके बाद मनुसिंघवी ने तर्क और दलीलें प्रस्तुत किए। इसके बाद राज्यपाल और शिंदे गुट के वकीलों महेश जेठमलानी, हरीश साल्वे और नीरज कौल की ओर से दलीलें दायर की गईं। इसके बाद आज (गुरुवार 16 मार्च) कपिल सिब्बल ने ठाकरे गुट की तरफ से फिर दलील पेश की।
बता दें, कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं। अब फैसला किसके पक्ष में जाएगा, सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि कई संवैधानिक मसलों को सुलझाना है तो पूरा देश इसका इंतजार कर रहा है। चर्चा खत्म करते ही कपिल सिब्बल भावुक हो गए। उन्होंने कहा कि संविधान और लोकतंत्र के संरक्षक के रूप में इस न्यायालय के इतिहास की पुष्टि की गई है। कपिल सिब्बल ने एकनाथ शिंदे सरकार स्थापित करने के लिए राज्यपाल द्वारा लिए गए फैसले को रद्द करने की माँग करते हुए कहा है कि अगर अदालत ने हस्तक्षेप नहीं किया तो देश में लोकतंत्र खत्म हो जाएगा।
सिब्बल ने कहा, ‘अदालत के इतिहास में यह एक ऐसा मामला है जहाँ लोकतंत्र का भविष्य तय होगा। मुझे पूरा यकीन है कि अगर अदालत ने मध्यस्थता नहीं की, तो लोकतंत्र ख़तरे में पड़ जाएगा। क्योंकि आने वाले समय में किसी भी सरकार को टिकने नहीं दिया जाएगा। मैं इस आशा के साथ अपना तर्क समाप्त करता हूँ कि आप राज्यपाल के आदेश को रद्द कर देंगे। महाराष्ट्र के 1.4 करोड़ लोगों को आपसे उम्मीद है।
शिंदे गुट को बहुमत साबित का मौका कैसे मिला ?
इससे पहले अपने भाषणों में कपिल सिब्बल ने राज्यपाल की भूमिका को लेकर कई सवाल खड़े किए। सिब्बल ने कहा, ‘विभाजित गुट जब भी गुट बना रहता है, वह राजनीतिक दल नहीं हो सकता। चुनाव आयोग तय कर सकता है कि राजनीतिक दल कौन है। विधायक केवल राजनीतिक दल के चुनाव चिह्न के साथ चुने जाते हैं। विधायिका में भी, राजनीतिक दल का सर्वोपरि महत्व है। लेकिन जब तक चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को राजनीतिक दल के रूप में मान्यता नहीं दी, राज्यपाल ने किस आधार पर इसका फैसला किया। बता दें, राज्यपाल ने अपने मनमाने तौर पर 34 विधायकों को असली शिवसेना मान लिया था।