September 29, 2024
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जोशीमठ से लौट कर वैज्ञानिकों ने कहा – भू धंसाव में आएगी कमी, लोगों को मिलेगी राहत

जोशीमठ से लौट कर वैज्ञानिकों ने कहा – भू धंसाव में आएगी कमी, लोगों को मिलेगी राहत

  • WRITTEN BY: Vikas Rana
  • LAST UPDATED : January 17, 2023, 11:50 am IST

चमोली। जोशीमठ में भू-धंसाव को लेकर बड़ी राहत दिखने को मिल रही है। भू- धंसाव का अध्ययन कर लौटी वैज्ञानिकों की टीम ने बड़ा खुलासा करते हुए बताया कि, “जोशीमठ में लगातार हो रहे भू-धंसाव से जल्द स्थानीय लोगों को राहत मिलने की उम्मीद है। भू- धंसाव क्षेत्र से अब अधिकांश पानी निकलकर अलकनंदा नदी में जा चुका है, साथ ही अब मिट्टी भी सूखने लगी है। ऐसे में भू- धंसाव में काफी हद तक कमी नजर आएगी।

क्या बोले वैज्ञानिक ?

घटना को लेकर वैज्ञानिकों का कहना है कि, “जोशीमठ के जेपी कॉलोनी से हो रहे लगातार पानी के रिसाव के कारण भूमि अपनी पकड़ छोड़ रही थी। फिलहाल यहां से हो रहे पानी की निकासी की स्पीड 10 लीटर प्रति सेंकड थी, जिसमें अब कमी आ गई है। साथ ही अब मिट्टी भी सूखने लगी है। जिससे जल्द ही लोगों को राहत मिलेगी, भू-धंसाव  का अधिकतर पानी निकलकर अब अलकनंदा नदी में जा चुका है।

इसके अलावा वैज्ञानिकों ने 2021 में आई रैणी आपदा को भी भू- धंसाव के लिए काफी हद तक जिम्मेदार माना है। रैणी आपदा के दौरान धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों में बड़े पैमाने पर जलप्रवाह हुआ था, जिससे अलकनंदा में कई पारंपरिक जलप्रवाह ने अपने रास्ते बदल दिए थे, जिसका असर अभी तक देखने को मिल रहा है।

वैज्ञानिक जोशीमठ की मिट्टी को अपने साथ ले कर आए  है। जिसका अध्ययन करके वैज्ञानिक इस बात का पता पता लगाएंगे कि अभी भी भू-धंसाव की मिट्टी में पानी की कितनी मात्रा बची हुई है, साथ ही जो जल बहाव हो रहा है कहीं वो अज्ञात स्त्रोत का पानी तो नहीं है।

वैज्ञानिकों की टीम दिनरात कर रही अध्ययन

बता दें, जोशीमीठ भू- धंसाव को लेकर केंद्र सरकार की कई एजेंसियां और उनके वैज्ञानिक दिनरात अध्ययन कर रहे है, जिसमें वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी, आईआईटी रूड़की, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, आईआईआरएस समेत देश के कई नामी संस्थान शामिल है।

जोशीमठ को बचाने के लिए जल निकासी जरूरी

वैज्ञानिकों का कहना है कि, अगर जोशीमठ को जल्दी बचाना है तो तत्काल यहां पर जल निकासी की अत्याधुनिक व्यवस्था करनी होगी। इसके साथ ही पानी की आपूर्ति को भी नियंत्रित करना होगा। वहीं, भू- धंसाव वाले इलाकों में जो भी निर्माण किए जाएं या रिटेनिंग वॉल बनाई जाए, उनमें डीप होल बनाए जाएं। ताकि मानसून के दौरान रिटेनिंग वॉल जल निकासी में बाधा ना बन जाएं।

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