चंडीगढ़. Punjab Assembly Election 2022 dates announced: पंजाब में चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है 14 फरवरी को प्रदेश की सभी 117 सीटो पर एक ही चरण में चुनाव होंगे और चुनाव के नतीजे 10 मार्च को आएंगे, प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक और किसान आंदोलन जैसे घटनाक्रमो ने पंजाब चुनाव में लोगो की दिलचस्पी को बढ़ा दिया है, आइए जानते है कि पिछले चुनाव से कितने अलग होंगे इस बार के चुनाव और क्या होंगे मुद्दे
पंजाब विधानसभा चुनावों की बात करे तो पहले सीधी लड़ाई अकालीदल और कांग्रेस के बीच होती थी अगर हम पिछले चार चुनावों की बात करे तो सत्ता इन्ही दो पार्टियो के पास रही है 2002, 2017 में कांग्रेस और 2007, 2012 में अकाली दल – भाजपा के गठबंधन की सरकार थी 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के रूप में राज्य की राजनीति में एक नई पार्टी की इंट्री होती है, इस नई नवेली पार्टी ने इस चुनाव में चार लोकसभा सीटे जीतकर सबको चौंका दिया था.
लोकसभा चुनाव की सफलता देखकर 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को सरकार बनाने के मुख्य दावेदार के रूप में देखा जा रहा था लेकिन जनता का नतीजा कांग्रेस पार्टी के पक्ष में गया और अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने राज्य की 117 सीटों में 77 सीटें जीतकर भारी बहुमत से सरकार बनाई थी
इस वक्त के हालात की बात करे तो पंजाब की राजनीतिक तापमान बढ़ा हुआ है भाजपा और अकाली दल का 20 वर्ष पुराना गठबंधन टूट चुका है अमरिंदर सिंह कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस बना चुके है और भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर चुके है, वही भाजपा अब राज्य में जूनियर पार्टी की भूमिका को छोड़कर अब पूरे राज्य में अपना विस्तार कर रही है, राज्य का सबसे बड़ा विपक्षी दल आदमी पार्टी की बात करे तो कुछ दिनों पहले हुए चंडीगढ़ निकाय चुनाव में आप सबसे बड़ी पार्टी बनी थी हालांकि एक वोट के खारिज होने से वो अपना मेयर नही बना सकी और बीजेपी बाजी मार ले गई.
सत्ताधारी पार्टी की कांग्रेस की अंदरूनी कलह खत्म होने का नाम नही ले रही है, अमरिंदर सिंह को हटाकर मुख्यमंत्री बनाए गए चरणजीत सिंह चन्नी को अपनी ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और सुनील जाखड़ से विरोध का सामना करना पड़ रहा है
केंद्र सरकार के द्वारा लाए गए तीन कृषि कानून के विरोध में शुरू हुआ देश की राजनीति में बड़े बदलावों का कारण बना, MSP खत्म होने के मुद्दे पंजाब और हरियाणा के किसान संगठनों ने लगभग एक साल तक देश की राजधानी दिल्ली के बार्डर पर डेरा जमाए रखा, भारी विरोध और आंदोलन की ही वजह से केंद्र सरकार को पीछे हटना पड़ा और तीनो कृषि कानून रद्द हो गया, संयुक्त किसान मोर्चा के आकड़े को माने तो इस आंदोलन में 700 ज्यादा किसानों की हुई.
मरने वाले ज्यादातर किसान पंजाब और हरियाणा के रहने वाले थे, यही वजह है कि आंदोलन के समाप्त होने के बाद आंदोलन को मिले जनसमर्थन का राजनीतिक फायदा लेने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल 32 संगठनो में से 22 संगठनो ने मिलकर एक राजनीतिक दल की स्थापना भी की है अब विधानसभा चुनाव में इसका क्या फायदा होता है ये देखनी की वाली बात है.
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