President Rule Imposed in Maharashtra: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की मंजूरी दे दी है. सूबे की राजनीति में बीजेपी, शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के बीच पिछले कुछ दिनों के अंदर जो उठा-पटक देखने को मिली, ये किसी फिल्म की कहानी से कम तो बिल्कुल भी नहीं है लेकिन खास बात है कि इस पूरे ड्रामे में सूबे की जनता खुद को ठगा महसूस जरूर कर रही है.
मुंबई. महाराष्ट्र में सियासी खेल के बीच राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्यपाल की सूबे में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश को मंजूर कर लिया. देवेंद्र फड़णवीस की बीजेपी को तो नहीं लेकिन उद्धव ठाकरे की शिवसेना, शरद पवार की एनसीपी और सोनिया गांधी की कांग्रेस के लिए यह जरूर झटका है. महाराष्ट्र की राजनीति में पिछले कुछ दिनों के अंदर जो उठा-पटक देखने को मिली, ये किसी फिल्म की कहानी से कम तो बिल्कुल भी नहीं है लेकिन खास बात है कि इस पूरे ड्रामे में सूबे की जनता खुद को ठगा महसूस जरूर कर रही है.
जनता ने जब वोट डाला था तो उन्हें ये अंदाजा कभी नहीं होगा कि वे अपना मतदान व्यर्थ करने जा रहे हैं. और व्यर्थ कहें भी क्यों न, विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद जैसे-जैसे राजनीतिक दलों ने सरकार बनाने की कोशिश की, उससे साफ होता है कि सभी को अपना स्वार्थ देखना है, जनता मरती हो मरे.
चाहे कितने किसान राज्य में परेशानी की मार झेल रहे हो लेकिन एसी में बैठे राजनेताओं को पहले अपना स्वार्थ तलाशते हुए यह तय करना है कि बड़ा पद किस पर जाए. खास बात है कि सिर्फ एक नहीं बल्कि सभी राजनीतिक पार्टियां स्वार्थ के इस सागर में गोते लगा रही है.
सच बोलें तो बीजेपी- शिवसेना ने सबसे पहले जनादेश का अपमान किया
चलिए वो बीजेपी और शिवसेना का आतंरिक झगड़ा है कि इनके बीच सीएम का कौनसा फॉर्मूला तय हुआ था. हमें मतलब है कि जब आप दोनों के पास बहुमत की पूरी संख्या थी तो भी सरकार क्यों नहीं बनाई. आप दोनों पार्टियों के अपने झगड़ों में जनता क्यों पिसी. भई जनता ने वोट दी राज्य में विकास देखने के लिए न की राजनीतिक ड्रामे पर हर रोज नई फिल्म देखने के लिए लेकिन क्या करें सियासत चीज ही ऐसी है.
मौका था तो जनता की सेवा के लिए एनसीपी और कांग्रेस क्यों पीछे हटी
बीजेपी और शिवसेना की सरकार नहीं बनी तो राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने पहले बीजेपी और फिर शिवसेना को सरकार बनाने का प्रस्ताव दिया. अब सेना का सरकार बनाने का नंबर आया तो एनसीपी और कांग्रेस अपने कदम पीछे हटाने लगी. या मान लिजिए दोनों पार्टियां अचानक शिवसेना के साथ आने में खुद को तैयार नहीं कर सकी. आखिरकार शिवसेना के सरकार बनाने का दावे का तय समय खत्म हो गया.
सोमवार 11 नवंबर राज्यपाल ने फिर एनसीपी नेताओं को सरकार बनाने को लेकर चर्चा के लिए बुलाया. खबरें आई कि शरद पवार को न्योता मिला है लेकिन राजभवन से इस बात की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं मिली. मंगलवार को खबर आई कि राज्यपाल ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की जिसे केंद्र की बैठक के बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूर कर लिया.
राजनीतिक दलों का सत्ता मोह या दुश्मनी, नुकसान तो जनता का है
विधानसभा चुनाव नतीजों से राष्ट्रपति शासन तक आखिरकार सभी राजनीतिक पार्टियों ने सत्ता के मोह के लिए या आपसी दुश्मनी में आकर अपने खूब मोह दिखाए लेकिन उस मजबूत सरकार बनाने के वादे को भूल गए जो चुनावी रण में जनता को दिया था. जनता भी अब क्या करे, वोट दे ही चुकी है अब तो जो होगा वो टीवी पर ब्रेकिंग न्यूज फॉर्मेट में देख लेंगे और आगे वोट के अधिकार को मजाक समझकर मन को समझा लेंगे.