PFI Ban: पहले भी ये चार राज्य लगा चुके हैं PFI पर बैन, लेकिन ऐसे मिल गई थी राहत

नई दिल्ली. बीते कुछ दिनों से पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया यानी पीएफआई सुर्ख़ियों में बना हुआ है, जब से एनआईए ने PFI के ठिकानों पर छापेमारी की है तब से हर जगह बस PFI की ही बात हो रही है. इस बीच पीएफआई को लेकर एक और बड़ी खबर आ रही है. दरअसल, मोदी सरकार […]

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PFI Ban: पहले भी ये चार राज्य लगा चुके हैं PFI पर बैन, लेकिन ऐसे मिल गई थी राहत

Aanchal Pandey

  • September 28, 2022 3:42 pm Asia/KolkataIST, Updated 2 years ago

नई दिल्ली. बीते कुछ दिनों से पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया यानी पीएफआई सुर्ख़ियों में बना हुआ है, जब से एनआईए ने PFI के ठिकानों पर छापेमारी की है तब से हर जगह बस PFI की ही बात हो रही है. इस बीच पीएफआई को लेकर एक और बड़ी खबर आ रही है. दरअसल, मोदी सरकार ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और उसके 8 सहयोगी संगठनों को 5 साल के लिए बैन कर दिया है, छापेमारी के बाद से ही पीएफआई को बैन करने की मांग उठ रही थी जिसके बाद अब मोदी सरकार ने ये फैसला लिया है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने PFI और उससे जुड़े संगठनों की गतिविधियों को देश के लिए एक खतरा बताया और अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट यानी UAPA के तहत इसे बैन ही कर दिया, बता दें, इससे पहले भी चार राज्य पीएफआई पर बैन लगा चुकी है लेकिन उस समय उन्हें कोर्ट से उसे राहत मिल गई थी.

2018 में लगा था बैन

साल 2006 में बने पीएफआई पर राष्ट्रीय स्तर पर तो इस तरह बैन पहली बार ही लगा है, लेकिन झारखंड में चार साल पहले ही राज्य में पीएफआई बैन कर दिया गया था. उस समय राज्य की तत्कालीन भाजपा सरकार ने पीएफआई को पहली बार 12 फरवरी 2018 को प्रतिबंधित कर दिया था, तब सरकार ने संगठन पर बैन लगाने वाले अपने आदेश में कहा था कि खुफिया सूचना मिली है कि पीएफआई के सदस्यों का रिश्ता आतंकी संगठन आईएसआईएस से है और ये संगठन उससे प्रभावित है. झारखंड के पाकुड़ और साहिबागंज जिले में पीएफआई सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोहिश भी करता रहा है.

जब बैन को कोर्ट में दी गई चुनौती

झारखंड सरकार के एक्शन के बाद PFI झारखंड चैप्टर के महासचिव अब्दुल बदूद ने इसपर से बैन हटाने के लिए हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर दी, पीएफआई की ओर से दाखिल की गई अर्जी में कहा गया था कि ‘सरकार ने आपराधिक कानून संशोधन अधिनियम 1908 की धारा 16 के तहत पीएफआई पर बैन लगाया है, जबकि यह धारा 1932 से तो अस्तित्व में ही नहीं है.
पीएफआई ने अपनी अर्जी में अनुच्छेद 19 का उल्लेख करते हुए कहा था कि इस देश में सभी को बोलने और लिखने का मौलिक अधिकार है और सरकार ने बिना कारण बताओ नोटिस के सीधे बैन ही लगा दिया.

हाईकोर्ट ने दी थी राहत

रांची हाईकोर्ट के जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय की बेंच ने इस मामले में कहा था कि पीएफआई पर लगाए बैन को 28 अगस्त 2018 को हटा दिया था. कोर्ट ने सरकारी अधिसूचना को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि इसे राजपत्र में प्रकाशित नहीं किया गया, इसके साथ हाईकोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि सरकार कमियों को दूर कर पीएफआई को दोबारा प्रतिबंधित कर सकती है.

 

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