नई दिल्ली। Patna High Court: पटना उच्च न्यायालय का एक अहम फैसला आया है। बता दें कि पटना हाई कोर्ट ने कहा है कि यदि पति अपने नवजात बच्चे के पालन-पोषण और परवरिश के लिए ससुराल से पैसे की मांग करता है तो इस मांग को ‘दहेज’ नहीं कहा जा सकता है। न्यायमूर्ति बिबेक चौधरी […]
नई दिल्ली। Patna High Court: पटना उच्च न्यायालय का एक अहम फैसला आया है। बता दें कि पटना हाई कोर्ट ने कहा है कि यदि पति अपने नवजात बच्चे के पालन-पोषण और परवरिश के लिए ससुराल से पैसे की मांग करता है तो इस मांग को ‘दहेज’ नहीं कहा जा सकता है। न्यायमूर्ति बिबेक चौधरी की पीठ ने एक पति की ओर से दायर की गई पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए ये टिप्पणी की है।
याचिकाकर्ता ने आईपीसी की धारा 498ए तथा दहेज निषेध अधिनियम 1961 की धारा 4 के तहत निचली अदालत से मिली सजा को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। पति ने कोर्ट में बताया कि उसका विवाह 1994 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था और इसके बाद पति-पत्नी साथ में रहने लगे। उनके तीन बच्चे हुए। इनमें से दो लड़के हैं और एक लड़की है। बता दें कि लड़की का जन्म साल 2001 में हुआ था।
बता दें कि पत्नी ने पति पर आरोप लगाया था कि बेटी के जन्म के तीन साल बाद पति लड़की की देखभाल तथा भरण पोषण के लिए उसके पिता से 10 हजार रुपये मांगे।
साथ ही यह भी आरोप लगाया कि मांग पूरी नहीं होने पर उसको प्रताड़ित किया जाने लगा। हालांकि अदालत ने 10 हजार रुपये की मांग पर कोई सबूत नहीं पाया जिससे यह पता चले कि शिकायतकर्ता पत्नी और आवेदक पति के बीच विवाह को लेकर दहेज मांगा गया है।
इस पूरे मामले में पटना उच्च न्यायालय ने कहा कि ये आईपीसी की धारा 498ए के तहत दहेज की परिभाषा के दायरे में नहीं है। ऐसे में निचली अदालत के आदेश को रद्द किया जाता है। बता दें कि निचली अदालत की तरफ से पारित दोषसिद्धि और सजा के आदेश को भी रद्द कर दिया गया तथा पुनरीक्षण याचिका की इजाजत दी गई है।
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