पटना. बिहार की दो सीटों पर इस समय उपचुनाव होने वाले हैं, कल यानी 3 नवंबर को मोकामा और गोपालगंज सीट पर चुनाव होना है, जिसके नतीजे सात नवंबर को आएँगे. गोपालगंज और मोकामा दोनों ही सीटों का इतिहास बहुत दिलचस्प है. ऐसे में, आज हम मोकामा सीट के इतिहास के बारे में जानेंगे. इस सीट का चुनावी इतिहास बेहद दिलचस्प है, साल 1967 का विधानसभा चुनाव सिर्फ संयुक्त बिहार के लिए नहीं ब्लल्कि मोकामा के लिए भी बहुत यादगार था. यह वही संयुक्त बिहार था और वही साल था जहां कांग्रेस की सत्ता का सूरज ढल गया था और राज्य में पहली बार कोई गैर कोंग्रेसी सरकार बनी और जन क्रांतिदाल के नेता महामाया प्रसाद सिन्हा मुख्यमंत्री बने.
साल 1967 में बिहार (संयुक्त बिहार) में विधानसभा का चुनाव था, इससे पहले यहाँ कांग्रेस का ही राज था, लेकिन साल 1967 में पहली बार इस चुनाव में कांग्रेस को बहुमत हासिल नहीं हो सकीय, इसके पहले के तीनों चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन वैसे भी घटता जा रहा था लेकिन इस बार बहुमत न मिलने की वजह से कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई और तब आज़ादी के बाद पहली बार यहाँ गैर कोंग्रेसी सरकार बनी.
हालांकि उस समय विधायकों की संख्या बल सबसे ज्यादा कांग्रेस के बाद संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की थी, लेकिन कांग्रेस को सत्ता की कुर्सी से हटाने के लिए समझौता हुआ और मुख्यमंत्री महामाया बाबू बने और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की तरफ से कर्पूरी ठाकुर को उपमुख्यमंत्री बनाया गया, मोकामा विधानसभा भी इस परिवर्तन के साथ रहा और यहां से भी कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा. ये वो साल था जब यहाँ परिवर्तन हुआ था और यह बिहार के लिए पहला मौका था जब कांग्रेस को 318 सीट में से सिर्फ 128 सीटों पर ही जीत मिल पाई थी, तब दूसरी बड़ी पार्टी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी बनी और उसे 67 सीटों पर सफलता मिली, उस समय भारतीय जनसंघ को 26 सीटें, सीपीआई को 24, प्रजा सोशलिस्ट को 18 सीटें मिली थी, इस चुनाव की एक खासियत यह रही कि निर्दलीय भी 33 विधायक जीत कर विधानसभा के सदस्य बन गए, साल 1967 के विधानसभा चुनाव में बिहार में तो परिवर्तन हुआ ही लेकिन ये मत सोचिए कि मोकामा तब कम चर्चा में था, क्योंकि तब मोकामा एक साथ तीन रिकॉर्ड बने थे.
1967 के चुनाव में कांग्रेस का बोलबाला था इससे पहले तीन बार कांग्रेस यहाँ जीत का डंका बजा चुकी थी. आज़ादी के बाद पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के जगदीश नारायण सिंह चुनाव जीते थे और दूसरी बार भी जगदीश बाबू को जीत हाथ लगी, जबकि तीसरी बार कांग्रेस ने नए उम्मीदवार को उतारा, तब नए उम्मीदवार सरयू नंदन प्रसाद सिन्हा चुनाव जीत भी गए ऐसे में, कांग्रेस का मनोवल काफी बुलंद था, तभी उन्हें इस बात की भनक ही नहीं पड़ पाई कि यहाँ गैर कोंग्रेसी फ़िज़ा बह रही है. और इसी हवा की पीठ पर सवार होकर रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के उम्मीदवार बी लाल ने कांग्रेस के उम्मीदवार केपी सिंह को हराकर मोकामा विधान सभा ने एक कीर्तिमान बनाया, यहाँ रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया के उम्मीदवार बी लाल को 17174 वोट मिले तो कांग्रेस के उम्मीदवार केपी सिंह को 16137 वोटों से ही संतोष करना पड़ा, और ये सब तब हुआ जब कहा जाता था कि यहां का जातीय समीकरण सवर्णों के पक्ष में है, यहां सबसे ज्यादा भूमिहार हैं, इसके बाद ब्राह्मण, कुर्मी, यादव के साथ पासवान के वोटों आते हैं, तब कहा जाता था कि इस क्षेत्र के भूमिहार, ब्राह्मण और राजपूत गर एक तरफ वोट कर दिए तो जीत पक्की है.
पहला रिकॉर्ड तो ये बना कि यहाँ कांग्रेस की हार हुई इसके बाद दूसरा रेकॉर्ड यह बना कि रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया एक मात्र मोकामा सीट ही जीत सकी और तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण रिकॉर्ड यह बना कि सवर्ण बहुल क्षेत्र के समीकरण को तोड़ते पहली बार कोई पिछड़ी जाति के उम्मीदवार ने यहाँ से जीत हासिल की और ये सिर्फ तब की बात नहीं है बल्कि यह रिकॉर्ड तो आज तक कायम है. आज तक मोकामा विधान सभा से सिर्फ भूमिहार उम्मीदवार चुनाव जीतते रहे हैं, इनकी एक लंबी चौड़ी लिस्ट है, जिनमें दो बार जगदीश नारायण सिन्हा, एक बार सरयू नंदन सिन्हा, कामेश्वर प्रसाद सिंह, दो बार कृष्ण शाही, दो बार श्याम सुंदर सिंह धीरज, दो बार दिलीप सिंह, एक बार सूरजभान सिंह और चार बार अनंत सिंह चुनाव जीतकर विधानसभा जा यहाँ का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.
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