देहरादून: उत्तराखंड में पिघल रहे ग्लेशियर खतरे का मुसीबत बन सकते है. आपके बता दें कि ग्लेशियल झीलों के टूटने से होने वाली आपदाओं को रोकने के लिए भारतीय अनुसंधान केंद्रों ने अहम फैसला लिया है.
देहरादून: उत्तराखंड में पिघल रहे ग्लेशियर खतरे का मुसीबत बन सकते है. आपके बता दें कि ग्लेशियल झीलों के टूटने से होने वाली आपदाओं को रोकने के लिए भारतीय अनुसंधान केंद्रों ने अहम फैसला लिया है. इसरो ने उत्तराखंड में 13 ग्लेशियल झीलों को सेटेलाइट डाटा के आधार पर चिह्नित किया है, जिनमें से पांच बेहद संवेदनशील हैं. वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान और अन्य संस्थानों ने मिलकर इन झीलों का अध्ययन करने का फैसला किया है.
वहीं वाडिया संस्थान की एक टीम ने उत्तराखंड के भीलंगना नदी बेसिन में बन रही ग्लेशियल झील का दौरा किया है. 4750 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सर्दियों के दौरान झील पूरी तरह से जमी और बर्फ से ढकी रहती है. वहीं इस अध्ययन से ग्लेशियल झीलों के टूटने के कारणों को समझने में सहायता मिलेगी.
आपको बता दें कि वसंत की शुरुआत में तापमान बढने से बर्फ पिघलना शुरू हो जाती है. वहीं इस अध्ययन में जुटे संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अमित कुमार ने कहा कि आंकड़ों के मुताबिक यहां 1968 में कोई झील दिखाई नहीं दे रही थी. ये 1980 में दिखाई देने लगी, जो लगातार बढ़ रही है. साल 2001 तक विकास की दर कम थी और इसके बावजूद पांच गुना तेजी से बढ़ने लगी. 1994 से 2022 के बीच बढ़कर 0.35 वर्ग किमी हो गई, जो चिंता का विषय है.
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