लखनऊ: 2019 लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार पश्चिमी के क्षेत्रों वाली सीटों पर सभी राजनीतिक दलों का ध्यान पहले से ज्यादा है। इसमें से एक सीट है मेरठ-हापुड़ लोकसभा की सीट। पिछले तीन चुनाव से इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा है। इस बार यह सीट चर्चा में इसलिए भी है क्योंकि इस […]
लखनऊ: 2019 लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार पश्चिमी के क्षेत्रों वाली सीटों पर सभी राजनीतिक दलों का ध्यान पहले से ज्यादा है। इसमें से एक सीट है मेरठ-हापुड़ लोकसभा की सीट। पिछले तीन चुनाव से इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा है। इस बार यह सीट चर्चा में इसलिए भी है क्योंकि इस बार बीजेपी ने इस सीट से अरुण गोविल को टिकट दिया है, जिन्होंने प्रसिध्द धारावाहिक ‘रामायण’ में राम की भूमिका निभाई थी। ऐसे में जानते हैं कि इस सीट का राजनीतिक इतिहास क्या रहा है और यहां जातीय समीकरण क्या है?
2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर बेहद कड़ा मुकाबला देखने को मिला था। इस सीट पर पिछली बार सपा और बसपा का गठबंधन था, जिसमें यह सीट बसपा को मिली थी। बीजेपी की तरफ से राजेंद्र अग्रवाल को 586,184 वोट मिले थे। तो बहुजन समाज पार्टी के हाजी मोहम्मद याकूब को 581,455 वोट मिले थे। दोनों के बीच अंत तक कड़ा मुकाबला देखने को मिला था, जिसमें जीत आखिरकार राजेंद्र अग्रवाल के खाते में आई। उन्होंने 4,729 वोटों के अंतर से चुनाव जीता था। तो वहीं कांग्रेस के हरेंद्र अग्रवाल तीसरे नंबर पर रहे थे।
इस सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो 1991 से लेकर अब तक हुए 8 चुनाव में 6 बार भाजपा को जीत मिली है। बीजेपी को 1991, 1996 और 1998 में इस सीट पर जीत मिली। बीजेपी का जीत का सिलसिला 1999 में जाकर टूट गया जब इस सीट से कांग्रेस के अवतार सिंह भड़ाना ने चुनाव जीता। साल 2004 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने मोहम्मद शाहिद अखलाक के दम इस सीट को जीता। इसके बाद यहां पर बीजेपी ने जीत हासिल करने का जो सिलसिला शुरू किया उसे कोई भी दल रोक नहीं पाया। 2009 के चुनाव में राजेंद्र अग्रवाल ने 47,146 वोटों के अंतर से बीजेपी के लिए जीत हासिल की थी। फिर 2014 में मोदी लहर में राजेंद्र अग्रवाल ने इस सीट पर बीएसपी के अखलाक को 2,32,326 वोटों के अंतर से हराया। हालांकि राजेंद्र अग्रवाल 2014 वाली बड़ी जीत को 2019 में कायम नहीं रख सके। उन्हें 2019 में इस सीट पर जीत हासिल करने के लिए खासा संघर्ष करना पड़ा था और करीब 5 हजार वोटों के अंतर से चुनाव जीता था।
इस सीट पर दलित और मुस्लिम बाहुल्य वोटर्स का वर्चस्व माना जाता रहा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, इस सीट पर मुस्लिम आबादी करीब 5 लाख 64 हजार की है। जाटव बिरादरी की भी यहां पर खास भूमिका है और इनकी आबादी लगभग 3 लाख 14 हजार 788 है। वाल्मीकि समाज की आबादी 59,000 के करीब है। यहां ब्राह्मण, वैश्य और त्यागी समाज के वोटरों की भी अच्छी खासी संख्या है। जाटों की आबादी भी करीब 1.30 लाख है। इसके साथ गुर्जर और सैनी समाज के मतदाताओं का भी इस सीट पर खास प्रभाव देखने को मिलता है।
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