लखनऊ: लोकसभा चुनाव 2024 के दूसरे चरण के मतदान 26 अप्रैल को होने है। उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र की सीटों पर भी दूसरे चरण में मतदान होना है। ऐसे में मथुरा लोकसभा की सीट बहुत सुर्खियों में हैं। मथुरा ऐतिहासिक और धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में काफी लोकप्रिय है। इसे लोग श्रीकृष्ण जन्म […]
लखनऊ: लोकसभा चुनाव 2024 के दूसरे चरण के मतदान 26 अप्रैल को होने है। उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र की सीटों पर भी दूसरे चरण में मतदान होना है। ऐसे में मथुरा लोकसभा की सीट बहुत सुर्खियों में हैं। मथुरा ऐतिहासिक और धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में काफी लोकप्रिय है। इसे लोग श्रीकृष्ण जन्म भूमि के नाम से भी जानते हैं।
राजनीति की बात करें तो इस सीट से कांग्रेस, भाजपा और रालोद चुनाव जीतती रही हैं। अभी पिछले महीने रालोद और बीजेपी का गठबंधन हो चुका है, और बीजेपी को यह सीट मिली है। बीजेपी ने यहां से एक बार फिर मौजूदा सांसद हेमा मालिनी पर भरोसा जताया है। इस चुनाव में हेमा मालिनी की नजर लगातार जीत की हैट्रिक लगाने पर होगी। वहीं इंडिया गठबंधन में यह सीट कांग्रेस के पाले में गई है। ऐसे में आइए जानते हैं इस सीट के राजनीतिक इतिहास और जातीय समीकरण के बारे में।
लोकसभा चुनाव 2019 में मथुरा लोकसभा सीट पर बीजेपी और गठबंधन के साझा उम्मीदवार के बीच मुकबला देखने को मिला था। बीजेपी ने 2014 की सांसद हेमा मालिनी को एक बार फिर टिकट दिया था। वहीं सपा, बसपा और रालोद के चुनावी गठबंधन की वजह से यह सीट रालोद के खाते में गई थी। रालोद की तरफ से कुंवर नरेंद्र सिंह मैदान में थे। गठबंधन होने के बावजूद भी चुनाव एकतरफा ही रहा। हेमा मालिनी को चुनाव में 671,293 वोट मिले थे तो नरेंद्र सिंह के खाते में 377,822 वोट आए थे।
वहीं बीजेपी और रालोद के बीच मुकाबले में कांग्रेस की हालत बेहद खराब रही। कांग्रेस उम्मीदवार महेश पाठक को मात्र 28,084 वोट ही मिले। हेमा ने जीत को दोहराते हुए 293,471 वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी।
मथुरा के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो राम मंदिर आंदोलन की वजह से बीजेपी के लिए यह सीट गढ़ के रूप में बदलती चली गई। 1952 के चुनाव में राजा गिरराज सरण सिंह को बतौर निर्दलीय ही जीत मिली थी। 1957 के चुनाव में यह सीट निर्दलीय उम्मीदवार के खाते में गई थी और राजा महेंद्र प्रताप सिंह को जीत मिली थी। कांग्रेस को यहां खाता खोलने के लिए 10 साल का लंबा इंतजार करना पड़ा था। 1962 के लोकसभा चुनाव में चौधरी दिगंबर सिंह यहां से जीते थे और 1967 में भी वह विजयी रहे थे। 1971 में भी यह सीट कांग्रेस के नाम रही और चकलेश्वर सिंह ने चुनाव जीता। इमरजेंसी के कारण कांग्रेस को 1977 में कई सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था, जिसमें मथुरा सीट भी शामिल थी। 1977 में यहां से जनता दल के मनीराम बागरी विजयी रहे। 1980 के चुनाव में चौधरी दिगंबर सिंह फिर से इस सीट से जीते। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को सहानुभूति लहर का फायदा मिला और यह सीट कांग्रेस के नाम रही। लेकिन 1989 के चुनाव में जनता दल ने यहां से चुनाव जीता।
1990 के दशक में राम मंदिर आंदोलन को गति मिली, जिसका फायदा बीजेपी को मिला। 1991 के चुनाव में साक्षी महाराज ने यहां से चुनाव जीता। फिर 1996, 1998 और 1999 में भाजपा के टिकट पर लड़ते हुए राजवीर सिंह ने जीत की हैट्रिक लगाई। लेकिन 2004 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर मानेंद्र सिंह को जीत मिली। फिर 2009 के चुनाव में बीजेपी और रालोद के बीच चुनावी गठबंधन होने की वजह से यहां आरएलडी के नेता जयंत चौधरी मैदान में उतरे और उन्होंने 1,69,613 वोटों के अंतर से चुनाव जीता।
मथुरा लोकसभा सीट उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र में आती है। इस सीट पर जाट बिरादरी का खास वर्चस्व माना जाता है। यहां के जातीय समीकरण को देखे तो 2019 के समय सबसे ज्यादा जाट मतदाता थे, जिनकी तादाद करीब सवा 3 लाख थी। इसके अलावा ब्राह्मण मतदाताओं की आबादी पौने 3 लाख थी। ठाकुर, जाटव और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी ठीकठाक है। वैश्य और यादव बिरादरी के मतदाता भी इस सीट पर अहम भूमिका निभाते हैं।
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