इंफाल: मणिपुर में जारी जातीय हिंसा को देखते हुए इंटरनेट पर लगे प्रतिबंध को बढ़ाया गया है. राज्य में इंटरनेट पर लगे प्रतिबंध की अवधि 20 जून तक बढ़ा दी गई है. 20 जून को दोपहर 3ः00 बजे तक राज्य में इंटरनेट पर प्रतिबंध रहेगा. मणिपुर के गृह आयुक्त टी रंजीत सिंह ने इस संबंध […]
इंफाल: मणिपुर में जारी जातीय हिंसा को देखते हुए इंटरनेट पर लगे प्रतिबंध को बढ़ाया गया है. राज्य में इंटरनेट पर लगे प्रतिबंध की अवधि 20 जून तक बढ़ा दी गई है. 20 जून को दोपहर 3ः00 बजे तक राज्य में इंटरनेट पर प्रतिबंध रहेगा. मणिपुर के गृह आयुक्त टी रंजीत सिंह ने इस संबंध में आदेश जारी किया है. उन्होंने आदेश जारी कर प्रदेश में शांति व्यवस्था बनाए रखने और उपद्रव को रोकने का निर्णय लिया है.
आदेश में आशंका जताई गई है कि इंटरनेट से प्रदेश में कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है। गौरतलब है कि हिंसा के दौरान 9वीं बार इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाया गया है. सबसे पहले 3 मई को राज्य में इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाया गया था जिसके बाद इसे अब तक नौ बार बढ़ाया जा चुका है. सरकार ने ये फैसला हिंसा और बवाल के बीच किसी भी तरह की अफवाहों को फैलने से रोकने के लिए लिया है दूसरी ओर कई संगठन राज्य में इंटरनेट को बहाल करने की मांग कर चुके हैं.
दरअसल मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को एक आदेश जारी किया था. इसमें राज्य सरकार को हाईकोर्ट द्वारा मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने पर विचार करने के आदेश दिए गए थे. हालांकि बाद में इस फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई और क्योंकि मामला आरक्षण से जुड़ा था तो पहले से ही अनुसूचित जनजाति में शामिल नगा-कुकी समुदाय में नाराज़गी फ़ैल गई जिसमें अधिकांश लोग ईसाई धर्म को मानते हैं.
दूसरी ओर मैतेई हिंदू धर्मावलंबी हैं. तीन मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाला गया जिसमें शामिल लोग मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति की मांग का विरोध कर रहे थे. ये इस दौरान दोनों समुदाय के बीच झड़प की शुरुआत हुई जिसमें अब तक पूरा राज्य जल रहा है. बता दें, नगा और कुकी वन और पर्वतीय क्षेत्र में रहते हैं जिन्हें इंफाल घाटी क्षेत्र में बसने का भी अधिकार है. वन एवं पर्वतीय क्षेत्र में मैतेई समाज को ऐसा अधिकार नहीं मिला है. नगा और कुकी राज्य के 90 फीसदी क्षेत्र में फैले हैं जिनकी आबादी 34 फीसदी है. दूसरी ओर मैतेई की कुल आबादी में हिस्सेदारी लगभग 53 फीसदी है लेकिन उन्हें दस फीसदी क्षेत्र मिला है. इतना ही नहीं 40 विधायक मैतेई समुदाय से है. इसलिए ये पूरी लड़ाई जमीन और जंगल को लेकर है.