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Manipur Violence: एक महीने की हिंसा में 98 मौतें… 310 हुए घायल

इंफाल: मणिपुर में चल रही हिंसा को एक महीने हो चुके हैं लेकिन हालात वैसे ही बेकाबू हैं. राज्य में हुई इस हिंसा को लेकर एक रिपोर्ट सामने आई है. रिपोर्ट में बताया गया है कि मणिपुर हिंसा में अब तक कुल 98 लोगों की जान जा चुकी है. जबकि इस हिंसा में 310 लोग घायल हुए हैं. हालांकि धीरे-धीरे स्थिति में सुधार नज़र आ रहा है लेकिन कई जिले अभी भी हिंसा की आग में जल रहे हैं. बता दें, 3 मई को मणिपुर के 10 जिलों में ये विरोध शुरू हुआ था. ये पूरा मामला मणिपुर में मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध से संबंधित है. जहां राज्य के कई हिस्सों में मैतेई-कुकी और नगा समुदाय के बीच हिंसा देखने को मिल रही है.

 

राहत शिविरों में हैं हजारों लोग

 

मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से जारी एक बयान के अनुसार मणिपुर में इस समय राहत शिविरों में कुल 37,450 लोग हैं. जहां राज्य में कुल राहत शिविरों की संख्या 272 है. हिंसा शुरू होने के बाद से अब तक आगजनी के कुल 4,014 मामले सामने आ चुके हैं. मणिपुर पुलिस ने पिछले एक महीने में हिंसा को लेकर कुल 3,734 मामले दर्ज़ किए हैं और हिंसा में संलिप्तता के संबंध में कुल 65 लोगों को गिरफ्तार किया गया है. सीएमओ ने जो बयान जारी किया है उसके अनुसार अब उपद्रवियों द्वारा गोलीबारी या घरों को जलाने की कम दुर्घटनाएं सामने आ रही हैं जिसके पीछे विभिन्न सुरक्षा एजेंसियों के समन्वित प्रयास हैं. राज्य में हिंसा के मद्देनज़र अब तक केंद्रीय सशस्त्र बलों की 84 कंपनियां तैनात की गई हैं.

ऐसे शुरू हुई लड़ाई

 

दरअसल मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को एक आदेश जारी किया था. इसमें राज्य सरकार को हाईकोर्ट द्वारा मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने पर विचार करने के आदेश दिए गए थे. हालांकि बाद में इस फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई और क्योंकि मामला आरक्षण से जुड़ा था तो पहले से ही अनुसूचित जनजाति में शामिल नगा-कुकी समुदाय में नाराज़गी फ़ैल गई जिसमें अधिकांश लोग ईसाई धर्म को मानते हैं.

दूसरी ओर मैतेई हिंदू धर्मावलंबी हैं. तीन मई को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाला गया जिसमें शामिल लोग मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति की मांग का विरोध कर रहे थे. ये इस दौरान दोनों समुदाय के बीच झड़प की शुरुआत हुई जिसमें अब तक पूरा राज्य जल रहा है. बता दें, नगा और कुकी वन और पर्वतीय क्षेत्र में रहते हैं जिन्हें इंफाल घाटी क्षेत्र में बसने का भी अधिकार है. वन एवं पर्वतीय क्षेत्र में मैतेई समाज को ऐसा अधिकार नहीं मिला है. नगा और कुकी राज्य के 90 फीसदी क्षेत्र में फैले हैं जिनकी आबादी 34 फीसदी है. दूसरी ओर मैतेई की कुल आबादी में हिस्सेदारी लगभग 53 फीसदी है लेकिन उन्हें दस फीसदी क्षेत्र मिला है. इतना ही नहीं 40 विधायक मैतेई समुदाय से है. इसलिए ये पूरी लड़ाई जमीन और जंगल को लेकर है.

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Riya Kumari

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