नई दिल्ली: इसी साल मई महीने से मणिपुर में दो समुदायों के बीच हुई हिंसा ने सैकड़ों लोगों की जान ले ली. इस हिंसा में कई परिवार बर्बाद हो गए और कई लोगों को राज्य छोड़कर विस्थापित होना पड़ा. इस बीच राज्य में हुई हिंसा में 175 लोगों ने अपनी जान गंवाई. दुख की बात […]
नई दिल्ली: इसी साल मई महीने से मणिपुर में दो समुदायों के बीच हुई हिंसा ने सैकड़ों लोगों की जान ले ली. इस हिंसा में कई परिवार बर्बाद हो गए और कई लोगों को राज्य छोड़कर विस्थापित होना पड़ा. इस बीच राज्य में हुई हिंसा में 175 लोगों ने अपनी जान गंवाई. दुख की बात ये है कि इन शवों में से अब तक केवल 75 की ही पहचान हो पाई है. अभी भी 100 शवों की पहचान नहीं हो पाई है. इन शवों को मुर्दा घरों में लावारिस छोड़ दिया गया है जिनके लिए अब तक कोई नहीं आया है. इस वजह से इन शवों का अब तक अंतिम संस्कार नहीं हो पाया है.
दरअसल अब इस मामले को लेकर पूर्व न्यायाधीशों की तीन सदस्यीय समिति ने राज्य सरकार को एक सुझाव दिया है. समिति का कहना है कि सरकार सभी मृतकों की एक लिस्ट जारी करे जिससे उनके सगे संबंधियों तक उनकी पहचान पहुंचाई जा सके. इसके बाद शव उन्हें सौंप दिए जाएंगे और उनसे संपर्क किया जाएगा. इसके अलावा यदि किसी मृतक का रिश्तेदार नहीं आता तो उसके शव का पूरे सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया जाता है.
गौरतलब है कि मणिपुर हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी. उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों को भी इस समिति में शामिल किया गया था. इस समिति का काम था हिंसा के मानवीय पहलुओं की जांच करना. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में समिति ने एक हलफनामा पेश किया है जिसमें कई सुझाव दिए गए हैं. समिति ने लावारिस शवों को लेकर कहा है कि यदि मृतक की पहचान नहीं होती तो जिला अधिकारी उसकी पूरी जिम्मेदारी लेंगे और उसका अंतिम संस्कार करेंगे. बताया जा रहा है कि JNIMS, रिम्स और चुराचांदपुर जिला अस्पताल के मुर्दा घरों में ये शव रखे गए हैं.