पटना: रामधारी सिंह दिनकर हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि एवं निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ कवि के रूप में स्थापित हैं। राष्ट्रवाद अथवा राष्ट्रीयता को इनके काव्य की मूल-भूमि स्वीकार करते हुए इन्हें ‘युग-चारण’ व ‘काल के चारण’ की संज्ञा दी गई है।
देश आजाद से पहले “दिनकर” एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और देश अजाद होने के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने गए। रामधारी सिंह पहली पीढ़ी के कवि थे। उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है, तो दूसरी ओर कोमल शृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है।
रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 24 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गाँव में हुआ था। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से इतिहास राजनीति विज्ञान में बीए किया। उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, उर्दू और अंग्रेजी का गहन अध्ययन किया था। बी. ए. पास करने के बाद वे एक विद्यालय में अध्यापक हो गए। 1934 से 1947 तक बिहार सरकार की सेवा में सब-रजिस्टार और प्रचार विभाग के उपनिदेशक पदों पर काम किया। 1950 से 1952 तक लंगट सिंह कालेज मुजफ्फरपुर में हिन्दी के विभागाध्यक्ष रहे, भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति के पद पर 1963 से 1965 के बीच काम किया और उसके बाद भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार बन गए। चार वर्ष में 22 बार उनका तबादला किया गया।
दिनकर को पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया। उनकी पुस्तक संस्कृति के चार अध्याय के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा उर्वशी के लिये भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अपनी लेखनी के माध्यम से हमेशा अमर रहेंगे। 1952 में जब भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ तो उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया और वह दिल्ली आ गए।
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