चंडीगढ़। एक पत्नी अपने पति की जिंदगी को बचाने के लिए अपनी किडनी पति को देना चाहती थी, मगर तब जाकर पत्नी को निराशा हाथ लगती है. जब उसकी इस इच्छा को केवल इसलिए खारिज कर दिया जाता है कि उसकी शादी हुए अभी ज्यादा समय नहीं हुआ था. मगर पत्नी अपनी जिद्द पर अड़ी […]
चंडीगढ़। एक पत्नी अपने पति की जिंदगी को बचाने के लिए अपनी किडनी पति को देना चाहती थी, मगर तब जाकर पत्नी को निराशा हाथ लगती है. जब उसकी इस इच्छा को केवल इसलिए खारिज कर दिया जाता है कि उसकी शादी हुए अभी ज्यादा समय नहीं हुआ था. मगर पत्नी अपनी जिद्द पर अड़ी रहती है और वह पति की जिंदगी को बचाने के लिए हाईकोर्ट तक इस मामले को लेकर जाती है. पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया कि विवाह की छोटी अवधि के आधार पर पति-पत्नी में से किसी एक द्वारा अंग प्रत्यारोपण की मांग को खारिज नहीं किया जा सकता है.
इस मामले में इस जोड़े ने 12 दिसंबर 2021 को शादी की थी. शादी के कुछ दिनों बाद पति की तबीयत बिगड़ गई और डायलिसिस पर चला गया. जालंधर निवासी पत्नी ने पति को बचाने के लिए अपनी एक किडनी पति को देने पर सहमति जताई और अस्पताल ने उसका आवेदन सक्षम अधिकारी को भेजा, लेकिन सक्षम अधिकारी ने इस आधार पर आवेदन खारिज कर दिया कि उनकी शादी रद्द कर दी जानी चाहिए. अभी कुछ ही समय हुआ है, इसलिए वह अंग प्रत्यारोपण की अनुमति नहीं दे सकते.
पत्नी के खिलाफ पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर मांग की गई थी कि उसके पति की हालत बहुत गंभीर है और वह डायलिसिस पर है और उसके गुर्दा प्रत्यारोपण की तुरंत अनुमति दी जानी चाहिए. मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के जस्टिस राजमोहन ने सारे रिकॉर्ड खंगालने के बाद पाया कि शादी की अवधि याचिकाकर्ता की पति की जान बचाने के लिए किडनी डोनेट करने की इच्छा को खारिज करने का आधार नहीं है.
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता पत्नी ने प्राधिकरण द्वारा निर्धारित सभी प्रकार के चिकित्सा परीक्षण किए, जिसमें उसकी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य स्थिति का सत्यापन भी शामिल है. सभी जांचों में यह पाया गया है कि वह अपने पति की जान बचाने के लिए किडनी दान करने के लिए पर्याप्त रूप से फिट है, उनके पति का जीवन गंभीर बना हुआ है.
याचिकाकर्ता के मामले को अस्पताल द्वारा गुर्दा प्रत्यारोपण को अधिकृत करने के लिए सक्षम प्राधिकारी के समक्ष रखा गया था, लेकिन उनके मामले को इस आधार पर खारिज कर दिया गया है कि याचिकाकर्ता और प्राप्तकर्ता के बीच विवाह की अवधि कम है. इस पर अदालत ने कहा कि मानव अंग प्रत्यारोपण नियम, 2014 के नियम 22 के तहत सक्षम प्राधिकारी द्वारा याचिकाकर्ता की पहचान और सहमति पहले ही सत्यापित की जा चुकी है.
अदालत ने कहा याचिकाकर्ता पर अपनी किडनी दान करने का कोई दबाव नहीं डाला गया है और पुलिस ने इसकी पुष्टि की है. इस मामले में याचिकाकर्ता प्राप्तकर्ता की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है. इस मामले में कोई कदाचार, लालच या जबरदस्ती दिखाने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं है.
याचिकाकर्ता और उनके पति विदेशी नागरिक नहीं हैं. प्राधिकरण समिति ने शादी की कम अवधि के कारण ही किडनी प्रत्यारोपण के याचिकाकर्ता के मामले को खारिज कर दिया है.दोनों की शादी का रजिस्ट्रेशन पहले ही रजिस्ट्रार ऑफ मैरिज में हो चुका है. इसलिए, तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, उच्च न्यायालय सक्षम प्राधिकारी को याचिकाकर्ता के आवेदन को लेने और प्रत्यारोपण के लिए अनुमति देने का निर्देश देता है.