Karnatka : कर्नाटक सरकार ने निजी कंपनियों में आरक्षण के विधेयक को मजूरी दे दी. इस विधेयक के तहत कोई भी उद्योग, कारखाना प्रबंधन श्रेणियों में 50 % और गैर-प्रबंधन श्रेणियों में 70 % लोकल लोगों को नियुक्त करेगा .कर्नाटक राज्य में कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में स्थानीय उम्मीदवारों के लिए आरक्षण वाले रोजगार विधेयक 2024 को 15 जुलाई को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में मंजूरी दे दी गई है. कैबिनेट ने प्राइवेट सेक्टर की C और D श्रेणी की नौकरियों में स्थानीय लोगों को आरक्षण देने का फैसला किया था
बता दें कि कर्नाटक में 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने अपने घोषणापत्र में राज्य की सभी सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की नौकरियों में 80 प्रतिशत आरक्षण देने का वायदा किया था
इस अधिनियम में स्थानीय उम्मीदवार को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है .जो कर्नाटक राज्य में पैदा हुआ है और जो 15 साल से इस राज्य में निवास कर रहा है .ऐसा व्यक्ति जो कन्नड़ बोलने, पढ़ने और लिखने में सक्षम हैं. यदि उम्मीदवार के पास कन्नड़ भाषा के साथ माध्यमिक विद्यालय का प्रमाणपत्र नहीं है तो उन्हें ‘नोडल एजेंसी’ द्वारा आयोजित कन्नड़ प्रवीणता परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी.
1.विधेयक के मुताबिक प्रबंधन श्रेणी में 50 प्रतिशत नौकरियां – पर्यवेक्षी, प्रबंधकीय, तकनीकी, परिचालन, प्रशासनिक और उच्चतर पद – स्थानीय उम्मीदवारों के लिए आरक्षित होनी चाहिए।
2.विधेयक में यह भी अपेक्षा की गई है कि गैर-प्रबंधन श्रेणी की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण देंगे – लिपिक, अकुशल, अर्धकुशल, आईटी और आईटीईएस फर्मों के कर्मचारी, अनुबंध और केजुअल कर्मचारी.
दरअसल सरकार चाहती है कि कन्नड़ धरती पर किसी भी कन्नड़वासी को नौकरी से वंचित न रखा जाए ताकि वह शांतिपूर्ण जीवन जी सके। हमारी सरकार कन्नड़ समर्थक है।” आरक्षण के उद्देश्य से सरकार ने ‘स्थानीय उम्मीदवार’ की परिभाषा कर्नाटक में जन्मे, 15 वर्षों से यहां रहने वाले, सुपाठ्य तरीके से कन्नड़ बोलने, पढ़ने और लिखने में सक्षम और नोडल एजेंसी द्वारा आयोजित अपेक्षित परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले व्यक्ति के रूप में की है।
कन्नड़ प्रवीणता परीक्षा केवल उन लोगों के लिए लागू होगी जिन्होंने हाई स्कूल में कन्नड़ भाषा नहीं पढ़ी है।
आरक्षण का यह आदेश उन नियोक्ताओं पर लागू होगा जो कर्नाटक दुकान एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम के अंतर्गत आते हैं या जो विनिर्माण या कोई सेवा प्रदान करने के उद्देश्य से वेतन, मजदूरी या अन्य पारिश्रमिक पर 10 या अधिक व्यक्तियों को रोजगार देते हैं।
यदि किसी उद्योग या कारखाने को योग्य या उपयुक्त स्थानीय उम्मीदवार नहीं मिलते हैं, तो उन्हें स्थानीय उम्मीदवारों को प्रशिक्षित करना होगा. तीन साल के अदंर सरकार या उसके एंजेसियों के सहयोग से स्थानीय अभ्यर्थियों को प्रशिक्षित करने के लिए कदम उठाने होंगे.
विधेयक में कहा गया है कि यदि पर्याप्त संख्या में स्थानीय उम्मीदवार उपलब्ध नहीं है तो कोई भी प्रतिष्ठान अधिनियम के प्रावधानो से छूट के लिए सरकार के सामने आवेदन कर सकता है समुचित जांच के बाद सरकार आदेश पारित कर सकती है .सरकार द्वारा पारित आदेश अंतिम होगा.
छूट मिल भी जाती है तो भी प्रबंधन नौकरियों में 25 प्रतिशत आरक्षण तथा गैर-प्रबंधन नौकरियों में 50 प्रतिशत हरहाल में होना चाहिए।
अगर विधेयक का उल्लंघन होता है तो नियोक्ताओं पर 10,000 रुपये से लेकर 25,000 रुपये तक का जुर्माना लगाने का प्रावधान है।
जुर्माने के बाद भी उल्लंघन जारी रहता है, तो सरकार उल्लंघन का समाधान होने तक प्रतिदिन 100 रुपये तक का जुर्माना लगा सकती है।
2016 में सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली पहली कांग्रेस सरकार ने निजी क्षेत्र में ग्रुप सी और डी की नौकरियों में कन्नड़ लोगों के लिए 100 प्रतिशत आरक्षण की योजना बनाई थी लेकिन विधि विभाग ने इसे यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि यह अनुच्छेद 14 और 16 के तहत संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करता है।
उद्योग जगत के दिग्गजों ने इस बिल की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि यह बिल फासीवाद के समान है . बता दें कि इंफोसिस के पूर्व मुख्य वित्त अधिकारी टीवी मोहनदास पई ने कहा कि यह विधेयक विकास में व्यवधान पैदा करेगा और हमें पीछे धकले देगा . यह विधेयक भेदभावपूर्ण और संविधान के खिलाफ है. उन्होंने आगे कहा कि यह अविश्वसनीय है कि कांग्रेस सरकार इस तरह का विधेयक लेकर आ सकती है. फार्मा कंपनी बायोकॉन की मैनेजिंग डायरेक्टर किरण मजूमदार शॉ ने कहा है कि एक तकनीकी केंद्र के रूप में हमें कुशल प्रतिभा की आवश्यकता होती है. हमारा उद्देश्य भी स्थानीय लोगों को रोजगार देना है लेकिन ऐसी शर्त नहीं होनी चाहिए.
ASSOCHAM कर्नाटक के को-चेयरमैन आर के मिश्रा ने भी सरकार के इस कदम का आलोचना करते हुए कहा है कि कर्नाटक सरकार का यह प्रतिगामी कदम है . अब स्थानीय आरक्षण को अनिवार्य करें और हर कंपनी में निगरानी के लिए एक सरकारी अधिकारी को नियुक्ति कर दें.
आईटी कंपनियों के शीर्ष नेतृत्व नैसकॉम ने कर्नाटक में निजी क्षेत्र में स्थानीय लोगों के लिए आरक्षण को अनिवार्य करने वाले विधेयक पर निराशा और चिंता जतायी थी.संगठन ने राज्य सरकार से इस विधेयक को वापस लेने का निवेदन किया है.आईटी उद्योगों ने चेतावनी देते हुए कहा कि यह कानून प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में राज्य की बढ़त को खत्म कर देगा और अबतक हुई सभी प्रगति को खत्म कर देगा. नैसकॉम ने दलील देते हुए कहा कि इससे कंपनियों को दूसरे स्थानों पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा
सिद्धारमैया सरकार ने 48 घंटे के अंदर प्राइवेट नौकरी में आरक्षण के बिल पर यू-टर्न ले लिया है .बुधवार को मुख्यमंत्री कार्यालय से बयान जारी क्या गया . इस बयान में कहा कि अभी इस विधेयक को अस्थायी रूप से रोक दिया गया है. इस विधेयक पर आने वाले दिनों में फिर से विचार कर फैसला लिया जाएगा. बता दें कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी X पर पोस्ट कर मामले की सफाई दी. उन्होंने लिखा है कि निजी क्षेत्र के संस्थानों, उद्योगों और उद्यमों में कन्नड़ लोगों के लिए आरक्षण लागू करने का इरादा रखने वाला विधेयक अभी भी तैयारी के चरण में है. अगली कैबिनेट बैठक में व्यापक चर्चा के बाद फैसला लिया जाएगा.
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