नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की एक बेंच कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अहम मामले की सुनवाई कर रही है, जिसमें स्कूल-कॉलेज में हिजाब न पहनने की बात की गई थी. ये मामला स्कूल यूनिफॉर्म के साथ मुस्लिम लड़कियों द्वारा सिर पर पहने जाने वाले एक ‘स्कार्फ पर पाबंदी’ (आम शब्दों […]
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की एक बेंच कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ अहम मामले की सुनवाई कर रही है, जिसमें स्कूल-कॉलेज में हिजाब न पहनने की बात की गई थी. ये मामला स्कूल यूनिफॉर्म के साथ मुस्लिम लड़कियों द्वारा सिर पर पहने जाने वाले एक ‘स्कार्फ पर पाबंदी’ (आम शब्दों में हिजाब बैन) से जुड़ा हुआ है, इस मामले की सुनवाई जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच कर रही है. तो वहीं अलग-अलग याचिका दाखिल करने वाले वकील ने अपनी दलीलें पेश की हैं. इन्हीं वकीलों में से एक देवदत्त कामत हैं, जिन्होंने हिजाब को ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का हिस्सा बताया, इसपर बेंच में शामिल जस्टिस गुप्ता ने पूछा-अगर कोई सलवार कमीज पहनना चाहता है या लड़के स्कूल में धोती पहनने की ज़िद करें तो क्या इसकी भी अनुमति दे दी जाए? आइए आपको बताते हैं आज कोर्ट में क्या-क्या हुआ:
देवदत्त कामत ने कोर्ट के सामने बुनियादी अधिकार का सवाल रखते हुए कहा- संविधान का अनुच्छेद 19 (1) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है और इसके तहत हमें ये अधिकार है कि हम खुद तय करें कि हमें क्या पहनना है. इस पर जस्टिस गुप्ता ने कामत से पूछा कि अभी आप Right to Dress की बात कर रहे हैं, तो बाद में आप Right to Undress की बात भी करेंगे, ये एक जटिल सवाल है. अदालत ने आगे पूछा कि अगर कोई सलवार कमीज पहनना चाहता है, या लड़के धोती पहनना चाहते हैं, तो क्या उन्हें इसकी भी अनुमति दे दी जाए?
इससे पहले कामत ने कोर्ट में दलील दी कि यहां सवाल ये है कि क्या सरकार अनुच्छेद-19, 25 और 26 के तहत छात्रों को उनके अधिकार देने में विफल है? हम यहां यूनिफॉर्म को चुनौती नहीं दे रहे और ना ही ये कह रहे कि कोई यूनिफॉर्म की जगह जींस या कोई अन्य कपड़ा पहन ले, मेरी दलील तो बस इतनी है कि अगर कोई छात्र स्कूल की यूनिफॉर्म पहनता है तो क्या सरकार उन्हें अपने सिर पर स्कॉर्फ बांधने से रोक सकती है? यहां ऐसे हिजाब या लिबाज़ की बात नहीं हो रही है जो सिर से पांव तक उन्हें कवर करता हो? हम बात कर रहे हैं एक ऐसे स्कार्फ की जो स्कूल यूनिफॉर्म से मिलता-जुलता हो, क्या उससे किसी की धार्मिक भावना आहत हो सकती है या किसी छात्र की यूनिफॉम नेशनल सिक्योरिटी या शांति जैसे अहम मसलों को हानि पहुंचा सकती है?
सुनवाई के दौरान देवदत्त कामत ने कहा कि क्या हमारी संवैधानिक व्यवस्था में एक छात्र या छात्रा से यह अपेक्षा की जाती है कि वह शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनुच्छेद 19, 21 और 25 के तहत अपने मौलिक अधिकारों को छोड़ दे? कामत ने कहा कि केंद्रीय विद्यालयों में भी छात्राओं को हिजाब पहनने की छूट है और वहां छात्राएं स्कूल यूनिफॉर्म से मैच करता हुआ हिजाब पहन सकती हैं. हमने ये दलील कर्नाटक हाईकोर्ट में भी दी थी, लेकिन हाई कोर्ट ने ये कहते हुए दलील खारिज कर दी कि केंद्रीय विद्यालयों का मसला राज्य सरकार के स्कूलों से विपरीत है.
दक्षिण अफ्रीका में कोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हुए कामत ने कहा कि केरल की एक छात्रा स्कूल में ड्रेस के साथ नथनी पहनना चाहती थी, वहां भी यही मसला आया. फिर कोर्ट ने फैसला दिया कि नोज रिंग यानी नथनी पहनना भले धार्मिक मान्यता का हिस्सा न हो, लेकिन ये पहचान से जुड़ा है इसलिए वहां की अदालत ने इसे मंजूरी दे दी. इसपर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आप इंडिया लौट आइए.