सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे. चेलमेश्वर के बाद अब जस्टिस कुरियन जोसेफ ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा को चिट्ठी लिखकर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट का अस्तित्व खतरे में है. उन्होंने कहा, 'कॉलेजियम द्वारा एक जज और एक वरिष्ठ वकील को तरक्की देकर सर्वोच्च न्यायालय में लाने की सिफारिश को दबाकर बैठे रहने के सरकार के अभूतपूर्व कदम पर अगर सुप्रीम कोर्ट ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो इतिहास हमें माफ नहीं करेगा.'
नई दिल्लीः 12 जनवरी, 2018..ये वो दिन था जब देश में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी. पीसी में न्यायाधीशों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे. तीन महीने बाद भी सुप्रीम कोर्ट के जजों के बीच कायम गतिरोध खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है. हाल में जस्टिस जे. चेलमेश्वर ने मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखी थी, अब जस्टिस कुरियन जोसेफ ने भी चीफ जस्टिस को चिट्ठी लिख कॉलेजियम की अनुशंसा के बाद भी सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में देरी पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट का अस्तित्व खतरे में है.
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार जस्टिस कुरियन जोसेफ ने इस लेटर में लिखा है, ‘कॉलेजियम द्वारा एक जज और एक वरिष्ठ वकील को तरक्की देकर सर्वोच्च न्यायालय में लाने की सिफारिश को दबाकर बैठे रहने के सरकार के अभूतपूर्व कदम पर अगर सुप्रीम कोर्ट ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो इतिहास हमें माफ नहीं करेगा. अब समय आ गया है इस बाबत सुप्रीम कोर्ट सरकार से सवाल पूछे क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की साख भी दांव पर लगी है. जस्टिस कर्णन के मामले की तरह तुरंत सात जजों की पीठ का गठन कर आदेश जारी करने की जरूरत है. कॉलेजियम की अनुशंसा पर फैसला कर सरकार अपने कर्तव्य का निर्वाहन करे. अनुशंसा पर कोई फैसला नहीं करना शक्ति का दुरुपयोग है.’
बता दें कि जस्टिस कुरियन जोसेफ अपने लेटर में कॉलेजियम के फरवरी के उस निर्णय का हवाला दे रहे हैं जिसमें वरिष्ठ वकील इंदु मल्होत्रा और उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के.एम. जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट में जज बनाने की सिफारिश की गई है. कुरियन जोसेफ ने अपने पत्र में केंद्र सरकार के रवैये पर भी नाराजगी जताई है. जस्टिस कुरियन ने इस लेटर की कॉपी सुप्रीम कोर्ट के 22 अन्य जजों को भी भेजी है. गौरतलब है कि 7 जजों की बेंच मामले की सुनवाई करते हुए कॉलेजियम की लंबित सिफारिशों पर तत्काल निर्णय लेने का आदेश दे सकती है. इसके बाद भी केंद्र सरकार अगर ऐसा नहीं करती तो इसे न्यायिक अवमानना माना जाएगा, जिससे सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच एक तरह का टकराव शुरू होने की आशंका है.
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