रांची: भले ही सरकार गांव-गांव में विकास यात्रा निकाल कर ग्रामीण विकास के दावों को आगे बढ़ा रही है, लेकिन धरातल पर हकीकत ग्रामीण विकास के दावों की पोल खोल रही है। सैकड़ों ग्रामीण पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। यहां के लोग झरने का गंदा पानी पीकर अपना गुजारा कर रहे हैं, लेकिन […]
रांची: भले ही सरकार गांव-गांव में विकास यात्रा निकाल कर ग्रामीण विकास के दावों को आगे बढ़ा रही है, लेकिन धरातल पर हकीकत ग्रामीण विकास के दावों की पोल खोल रही है। सैकड़ों ग्रामीण पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। यहां के लोग झरने का गंदा पानी पीकर अपना गुजारा कर रहे हैं, लेकिन ग्रामीणों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। प्रशासन के ढूलमूल रवैये का खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है।
पानी से भरा कंटेनर सिर पर ढो रहे हैं, लेकिन प्रशासन के झूठे वादों और खोखले दावों का बोझ अपने कंधों पर ढोना ग्रामीणों के लिए मुश्किल हो गया है। राज्य को बने हुए 2 दशक से ज्यादा का समय बीत चुका है। कई सरकारें आई और बदल गई, लेकिन आदिम जनजातियों की स्थिति जस की तस बनी हुई है। जैसा दशकों पहले था। आदिम जनजाति विकास की मुख्य धारा में प्रवेश करना तो दूर पानी की सुविधा से भी वंचित है।
ऐसा ही नजारा पाकुड़ जिले के महेशपुर प्रखंड का है। यहां के सहारनग्राम पंचायत की कालूपाड़ा पहाड़ियों में रहने वाले लोग बदतर स्तर का जीवन जीने को मजबूर है। यह आदिम आदिवासी समुदाय गंदे झरनों का पानी पीने को मजबूर है। पानी की किल्लत रहवासियों के लिए सिरदर्द बन गई है। आपको बता दें कि गांव से करीब 2 किलोमीटर दूर स्थित जंगल में पानी लाने के लिए अपनी जान जोखिम में डालने को मजबूर हैं।
इसके अलावा महेशपुर बीडीओ उमेश मंडल के कार्यकाल में भी पानी की समस्या को दूर करने की मांग की गई लेकिन महेशपुर बीडीओ ने कोई पहल नहीं की। आज भी ग्रामीण कुएं का प्रदूषित पानी नहीं पी सकते हैं। जहां उपयुक्त पाकुड़ में वरुण रंजन ने कहा था कि जहां स्वच्छ पानी नहीं मिल रहा है वहां टंकी के माध्यम से पानी पहुंचाया जाएगा। कई शहरों में पानी की समस्या है, लेकिन आज तक पानी की टंकी नहीं आई है।
ऐसे में न तो सरकार और न ही प्रशासन उनकी ओर ध्यान देता है। गांव के लोगों की हालत बद से बदतर होती जा रही है, लेकिन उनकी फरियाद सुनने वाला कोई नहीं है। चुनावी दौड़ की तैयारी कर रहे जनप्रतिनिधि अगर उन लोगों पर भी ध्यान दें जिनके लिए वे सत्ता में हैं तो शायद इन बेसहारा मजदूरों के दिन बदल जाएं।