राज्य

हरियाणाः IAS अशोक खेमका ने रोकी स्वर्ण जयंती समारोह से जुड़े खर्चों की फाइल, अफसरों की उड़ी नींद

चंडीगढ़ः हरियाणा के चर्चित IAS ऑफिसर और खेल महकमे के प्रमुख सचिव अशोक खेमका एक बार फिर अपनी कार्यशैली की वजह से सुर्खियों में हैं. इस बार उन्होंने राज्य में सरकारी आयोजनों पर हुए करोड़ों रुपये के खर्च का हिसाब मांगकर विभाग के अफसरों के माथे पर परेशानी के बल ला दिए हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन अफसरों ने राज्य सरकार के स्वर्ण जयंती समारोहों के खर्च को लेकर लंबे-चौड़े बिल लगाए हैं. खेमका ने बिल से संबंधित फाइलों पर साइन करने से इनकार करते हुए खर्च का ब्योरा मांगा है. अधिकारियों से पूछा गया है कि वह स्पष्ट करें कि किस मद में कितनी रकम खर्च की गई है.

क्या है मामला
राज्य सरकार ने हरियाणा राज्य के गठन के 50 वर्ष पूरे होने पर प्रदेश भर में स्वर्ण जयंती समारोह आयोजित करवाए थे. इसके लिए हर जिले को 54-54 लाख रुपये दिए थे. मगर, जिलों के उपायुक्तों (डीसी) ने एक से डेढ़ करोड़ रुपये के खर्च का लंबा-चौड़ा बिल बाउचर लगाकर भुगतान के लिए सचिवालय भेजा है. इस आयोजन का नोडल खेल विभाग को बनाया गया था. विभाग के प्रमुख सचिव अशोक खेमका ने सभी अधिकारियों से साफ कह दिया कि जितनी धनराशि खर्च के लिए तय थी, उससे एक रुपये अधिक नहीं मिलेगी. अशोक खेमका के आदेश के बाद से अधिकारी परेशान हैं. मिली जानकारी के अनुसार, खेमका ने इस मामले में अधिकारियों और खेल मंत्री अनिल विज से दो टूक कह दिया है कि बगैर पक्के बिलों के 54 करोड़ की इस खर्चे संबंधी फाइल पर वह अपने हस्ताक्षर कैसे कर दें?

खेमका को मिला मंत्री अनिल विज का साथ
बताते चलें कि खेल विभाग ने आयोजन के लिए 22 करोड़ रुपये जारी कर दिए थे, मगर जिलों से 11 करोड़ और रुपये मांगे गए. यह देखकर विभाग के प्रमुख सचिव अशोक खेमका ने सबसे स्टेटमेंट ऑफ एक्सपेंडिचर मांग लिया है. खास बात यह है कि खेमका की इस मुहिम को मंत्री अनिल विज का भी समर्थन मिल गया है. मंत्री अनिल विज ने कहा कि अशोक खेमका जो कर रहे हैं, वो उचित है. बिना पक्के बिल के धनराशि जारी नहीं हो सकती. सूत्रों के मुताबिक, राज्य मुख्य सचिव के साथ हुई बैठक में खेमका ने यह मुद्दा भी उठाया कि स्वर्ण जयंती में कंसल्टेंट नियुक्त करने की क्या जरूरत थी. 80 से 92 लाख की रकम कंसल्टेंट को दी गई. बताया जाए कि उसने कितना पैसा कहां खर्च किया? फिलहाल इस पूरे मामले में खर्च का ब्योरा देने में अधिकारियों के सामने दिक्कत यह है कि पक्का बिल जीएसटी के साथ मिलेगा. बगैर पक्के बिल के दिया गया खर्च किसी भी हाल में स्वीकृत नहीं होगा.

 

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Aanchal Pandey

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