पटना। बिहार कोकिला शारदा सिन्हा दुनिया छोड़कर जा चुकी हैं। विरासत में वो अपने फैंस को छठ का गीत देकर गईं हैं। शारदा सिन्हा लंबे समय से बीमार चल रहीं थीं। उनके पति ब्रज किशोर सिन्हा का हाल ही में निधन हुआ था, जिसके बाद से वो टूट गईं थीं। पति के खोने का दर्द इतना था कि अक्सर बीमार रहने लगीं। ब्रज किशोर सिन्हा इसी साल 22 सितंबर को ब्रेन हैमरेज के कारण दुनिया से चल बसे थे।
शादी के 54 साल बाद साथ छूटने का जख्म शारदा के दिल पर गहरा लगा। पति के निधन के एक हफ्ते बाद 1 अक्टूबर को फेसबुक पर इमोशनल पोस्ट लिखा। पति संग तस्वीर शेयर करके जल्द मिलने का वादा किया। शारदा सिन्हा की निधन के बाद से उनका यह पोस्ट तेजी से वायरल हो रहा है। लोग इसे देखकर भावुक हो रहे हैं।
शारदा ने फेसबुक पर लिखा है- जब सब घर में सो रहे होते थे, आज के दिन सिन्हा साहब , चुपके से उठ कर फूल वाले के पास जाते थे, दो गुलाब और कुछ चटपटा नाश्ता, हाथ में लिए, एक नटखट सी हंसी अपने आंखों में दबाए, घर आते थे, बिना आवाज किए, मेरे सिरहाने में रखी कुर्सी पर बैठ कर, इंतजार करते थे कि कब मैं उठूं, और वो मुझे वो दो गुलाब दे कर कहें, “जन्मदिन हो आज तुम्हे मुबारक, तुम्हे गुलसितां की कलियां मिले, बहारे न जाएं तुम्हारे चमन से, तुम्हे जिंदगी की खुशियां मिलें”।
शारदा सिन्हा आगे लिखती हैं कि मैं अर्ध निद्रा में, आंखे मलते हुए उठती, उन्हें हाथ जोड़ प्रणाम करती, और इससे पहले कि मैं अच्छी शब्दावली का चयन कर उन्हे धन्यवाद कहती, वे अधीर हो पूछ बैठते थे , ….” अरे भाई, आज तो कुछ खास होना चाहिए खाने में, फिर वो चटपटा नाश्ता मेरे ठीक सिरहाने रख कर कहते, हांजी ये सबके लिए है”। मैं उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखने के हिसाब से उन्हें मना करती, “मत खाइए ये सब , तबियत खराब हो जाएगी…. अरे छोड़ो जी…मस्ती में रहो कह कर चल देते ।
मैं बच्चों से कहती, उनको मत देना इस नाश्ते में से, वो पक्का पहले ही खा चुके होंगे… चश्में के ऊपर से वो मुझे घूरते और कहते..नही नही, मैं उन्हें और जोर से घूरती तो चुप चाप कह देते थे, …थोड़ा खाया था मैंने । फिर मैं बच्चों से उनकी दवा दिलवा कर उन्हे आराम करने को कहती थी। बिना सिन्हा साहब के ये दिन शूल सा गड़ता है मुझे, आज मैं क्या पूरी दुनियां ही उन्हें फूलों से सजा रही है । एकाद्शा/ द्वादशा की तैयारियां हैं, अब थोड़ा नाश्ता क्या पूरा भोज सामने है । ये कौन सा तोहफा दे गए सिन्हा साहब ?
बिहार कोकिला लिखती हैं कि उनसे अंतिम मुलाकात 17 सितंबर की शाम हुई, जब मैंने कहा था, 3 दिनों में मैं लौट कर आ जाऊंगी, आप अपना ध्यान रखिएगा । उन्होंने मुझे कहा, “… मैं बिल्कुल ठीक हूं , आप बस स्वस्थ रहिए.. और जल्दी लौट जाईयेगा। हाथ जोड़ कर ढब ढबाती आंखें मुझे आखरी बार देख रही थीं ये कौन जानता था।
आज का दिन बहुत भारी है। सिन्हा साहब की मौजूदगी का एहसास मुझे तो है ही , दोनो बच्चों वंदना और अंशुमन को तो ऐसा लगता है जैसे पिताजी कहीं गए हैं , थोड़ी देर से लौट आएंगे। ये चीरता सन्नाटा, ये शूल सी चुभन, हृदय जैसे फट कर बाहर आ जाएगा। आखरी मुलाकात की एक तस्वीर बची है, सबके दर्शनार्थ यहां साझा कर रही हूं । पोती उनकी गोद में है, आंखे उनकी भरी भरी, मैं द्रवित सी, दिलासा देती साथ खड़ी हूं । मैं जल्द ही आउंगी … मैने बस यही कहा था उनसे ……!
इससे पहले एक पोस्ट में शारदा सिन्हा ने लिखा कि Miss you so much Sinha Sahab ! मैं जग की कोई रीत न जानू, मांग का तोहे,सेनुर मानू, तू ही चूड़ियां मोरी, तू ही कलइयां, पग पग लिए जाऊं।
(आप ही चल दिए मेरी बलइयां लेकर , क्यू सिन्हा साहब ? ) करवाचौथ पर वो लिखती हैं कि लाल सिंदूर बिन मंगियों न शोभे….पर सिन्हा साहब की मधुर स्मृतियों के सहारे संगीत यात्रा को चलायमान रखने की कोशिश रहेगी । खास कर आज के दिन सिन्हा साहब को मेरा प्रणाम समर्पित।
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