September 20, 2024
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कैसे काम करता है सेंसर बोर्ड, फिल्म बनाने से पहले जान लें ये नियम 

  • WRITTEN BY: Ayushi Dhyani
  • LAST UPDATED : July 5, 2022, 7:04 pm IST

मुंबई, डायरेक्टर लीना मणिमेकलई की फिल्म काली के पोस्टर पर देशभर में विवाद हो रहा है. दरअसल, इस पोस्टर में मां काली को सिगरेट पीते हुए दिखाया गया है, जिसकी वजह से ये विवाद हो रहा है. अगर फिल्म भारत में रिलीज होती है तो फिर इसके क्या कायदे-कानून होते हैं। सेंसर बोर्ड कैसे काम करता है?

कैसे करता है काम

1. U (अ): फिल्म पर कोई रोक-टोक नहीं रहता. सब लोग इसे देख सकते हैं.

2. A (व): नाबालिग इसे नहीं देख सकते. वयस्कों पर कोई प्रतिबंध नहीं रहता.

3. UA (अव): कोई प्रतिबंध नहीं होता, लेकिन 12 साल से छोटे बच्चे माता-पिता के साथ ही ऐसी फिल्मों को देख सकते हैं.

4. S (एस): ऐसी फिल्में स्पेशल ऑडियंस के लिए होती है, जैसे- डॉक्टर या वैज्ञानिक वगैरह के लिए.

सेंसरशिप लगाना क्यों जरुरी है ?

1. भारत में हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है. मीडिया पर भी कोई रोक-टोक नहीं है. लेकिन लोग देखे और सुने हुए पर ज्यादा भरोसा करने लगते है और उससे ज्यादा प्रभावित होते हैं. यही कारण है कि फिल्मों के लिए सेंसरशिप जरूरी होती है.

2. 1989 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि ‘फिल्म सेंसरशिप इसलिए जरूरी है क्योंकि एक फिल्म में दिखाई गई बातें और एक्शन दर्शकों को प्रेरित करता है, वो उनके दिमाग पर मजबूत प्रभाव डालता है और भावनाओं को प्रभावित कर सकता हैं. फिल्म जितनी जल्दी अच्छाई फैला सकती है, उतनी ही जल्दी बुराई भी फैलाती है. इसकी तुलना संचार के अन्य माध्यमों से नहीं कर सकते हैं. इसलिए फिल्म की सेंसरशिप आवश्यक है.’

3. भारत में जो भी फिल्म बड़े पर्दे पर दिखाई जाएगी, उसे सर्टिफिकेट लेना होता है. फिर चाहे वो कोई हॉलीवुड फिल्म हो या कोई वीडियो फिल्म हो या फिर डब फिल्म हो. आमतौर पर डब फिल्मों के मामलों में सेंसर बोर्ड फिर से सर्टिफिकेट नहीं देता लेकिन सिर्फ दूरदर्शन के लिए बनाई गई फिल्मों को सर्टिफिकेट की जरूरत ही नहीं होती, क्योंकि उनकी अपनी व्यवस्था है.

4. सेंसर बोर्ड ये निश्चित करता है कि फिल्में सामाजिक मूल्यों और मानकों के प्रति उत्तरदायी और संवेदनशील बनी रहें. एक अच्छा सिनेमा दिखा सकें.

5. सिनेमैटोग्राफ (सर्टिफिकेशन) रूल्स 1983 के नियम 38 के मुताबिक, अगर कोई भी व्यक्ति अपनी फिल्म का विज्ञापन किसी अखबार, होर्डिंग, पोस्टर, छोटे विज्ञापन या ट्रेलर के जरिए करता है, तो उसे सर्टिफिकेशन करवाना जरूरी है. अगर ऐसा नहीं करवाता है तो सिनेमैटोग्राफ एक्ट 1952 की धारा 7 के तहत ये गैर-जमानती अपराध होता है.

 

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