श्रीनगर : जम्मू कश्मीर के स्कूलों में पहली कक्षा से 10वीं कक्षा तक के छात्रों के लिए बड़ी खबर है। दरअसल, पहली कक्षा से 10वीं कक्षा के लिए हिंदी भाषा अनिवार्य करने के लिए समिति बनाई जा रही है। हालांकि इस कोशिश पर बीजेपी को छोड़कर लगभग सभी राजनीतिक दलों ने आपत्ति जताई। उनका मनाना है कि हिंदी भाषा को अपनाने का कोई दवाब नहीं होना चाहिए। बल्कि छात्र को विकल्प देना चाहिए कि वह किस भाषा को चुनना चाहता है।
इसे लेकर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के वरिष्ठ नेता महबूब बैग ने कहा – यह आदेश ऐसा लगता है जैसे यहां की जनता पर जबरदस्ती थोपा जा रहा हो, उनकी मानें तो जब कोई चीज़ कुछ लोगों पर जबरदस्ती थोपी जाती है तो उसका विपरीत रिएक्शन सामने आता है। नेशनल कॉन्फ्रेंस प्रवक्ता और नेता तनवीर सादिक के अनुसार किसी विशेष भाषा के जबरन लागू करने का ऐसा आदेश जारी करना ठीक नहीं है। भारत देश में कई समुदाय हैं और कई भाषाएं हैं। साथ ही देश ऐसे ही डायवर्सिटी से बना हैं, हिंदी भाषा को लेकर ही ऐसा क्यों किया जा रहा है।
सीपीआईएम नेता मोहम्मद यूसुफ तारिगामी ने कहा- भारत देश विभिन्न समुदाय से बना हुआ हैं और यहाँ हर एक भाषा का अपना एक महत्व है। हिंदी भाषा को जम्मू कश्मीर के स्कूलों में पढ़ाए जाने का ये आदेश एक खास भाषा को प्राथमिकता देना है, जबकि जम्मू-कश्मीर में उर्दू सरकारी भाषा हैं। साथ ही महाराजा ने तब इसे बनाया था।
बीजेपी प्रवक्ता और नेता अल्ताफ ठाकुर के मुताबिक यह सरकार की ओर से अच्छा फैसला है। उनके अनुसार किसी भी इस्लामिक धार्मिक किताब में नही लिखा गया हैं कि उर्दू मुस्लिमों की जबान हैं और हिंदी नहीं है। उन्होंने कहा, क्या अरेबिक भाषा जानने वाले लोग ही केवल मुस्लिम हैं? उनके अनुसार यहां राजनेताओं की परेशानी हैं जो भाषाओं को भी धार्मिक रंग देते हैं। उनके अनुसार हिंदी देश में सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा हैं और यहां के छात्रों को इससे बहुत ज्यादा मदद मिलेगी।
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