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लड़कियों की कुत्तों और बकरियों से शादी, जानिए इस अजीब परंपरा के पीछे की सच्चाई!

नई दिल्ली: दुनिया भर में हर धर्म और संस्कृति की अपनी-अपनी रिवाज और परंपराएं हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक हर धर्म के लोग अपने-अपने विधि-विधान का पालन करते हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसी परंपरा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे। यह परंपरा भारत के कुछ हिस्सों में पाई जाती है, जहां लड़कियों की शादी कुत्ते या बकरी से कराई जाती है। आइए जानते हैं इस अजीब मान्यता के पीछे की वजह और इसे लेकर क्या कुछ कहा जाता है।

कुत्ते या बकरी से शादी: परंपरा और मान्यता

कुत्ते और बकरी के साथ शादी

भारत समेत कुछ अन्य देशों में भी विभिन्न प्रकार की शादी की परंपराएं हैं। ओडिशा और झारखंड के सीमावर्ती इलाकों में एक खास परंपरा है जिसमें बच्चों की शादी कुत्ते या बकरी से कराई जाती है। इस परंपरा के तहत, कभी पुरुष की शादी मादा कुतिया से कराई जाती है, और कभी महिला की शादी नर कुत्ते से। यह मान्यता सुनने में अजीब लग सकती है, लेकिन यह परंपरा स्थानीय आदिवासी समुदायों में वर्षों से निभाई जा रही है।

इस परंपरा का उद्देश्य

यह परंपरा बच्चों को बीमारियों से दूर रखने और जीवन में किसी भी प्रकार के दोष से बचाने के लिए निभाई जाती है। मान्यता के अनुसार, जब बच्चे के ऊपर के दांत पहले निकलते हैं, तो इसे मृत्यु दोष माना जाता है। इस दोष को दूर करने के लिए बच्चों की शादी जानवरों के साथ कराई जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस प्रक्रिया से बच्चे जीवन में स्वस्थ रहते हैं और बीमारियों से दूर रहते हैं।

इस परंपरा की प्रक्रिया और उम्र

शादी की प्रक्रिया

झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम और ओडिशा के क्योंझर व मयूरभंज जिलों में इस परंपरा को निभाने का तरीका खास है। यहां पर बच्चे की उम्र अधिकतम पांच साल तक होनी चाहिए जब उनकी शादी जानवर के साथ कराई जाती है। यदि लड़का है, तो उसकी शादी मादा कुतिया से कराई जाती है और यदि लड़की है, तो नर पिल्ले के साथ शादी की जाती है। इस शादी के दौरान पूरे गांव के लोग इकट्ठा होते हैं और इस अनोखे संस्कार को पूरा करते हैं।

पारंपरिक मान्यताएँ

मान्यता है कि इस परंपरा को निभाने से बच्चे जीवन में किसी भी प्रकार के दोष से बच जाते हैं। यह परंपरा खास दिनों और तिथियों पर निभाई जाती है, और इसे लेकर समाज में गहरी मान्यता और विश्वास है। कोल्हान विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग द्वारा अब इस परंपरा पर व्यापक अध्ययन किया जा रहा है ताकि इसके सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं को समझा जा सके।

यह परंपरा भले ही आज के आधुनिक युग में अजीब लग सकती है, लेकिन स्थानीय समुदायों में इसके प्रति गहरी आस्था और विश्वास है। इस तरह की परंपराएं हमें यह समझने में मदद करती हैं कि विभिन्न संस्कृतियों और समाजों में कैसे मान्यताएँ और रीति-रिवाज विकसित हुए हैं।

 

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Anjali Singh

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