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वो हरिशंकर तिवारी… जिसने UP को बताया बाहुबली का असली मतलब

नई दिल्ली: यूपी के पूर्व मंत्री और पूर्वांचल के बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी का कल मंगलवार को निधन हो गया। वह 91 वर्ष के थे। हरिशंकर तिवारी यूपी के जाने-माने नेता थे और किसी दौर में उनके नाम की पूर्वांचल में तूती बोला करती थी। जेल में रहते हुए उन्होंने चुनाव लड़ा। माना जाता है कि हरिशंकर तिवारी जेल में रहते हुए चुनाव जीतने वाले भारत के पहले नेता थे। हरिशंकर तिवारी अपराध से राजनीति में आ गए थे। हरिशंकर तिवारी प्रदेश के ऐसे नेता थे, जिनके कई दलों से संबंध थे। चिल्लूपार सीट में दो दशकों से अधिक समय से इनका दबदबा कायम रहा। साल 1985 से 2007 तक वे इसी सीट से विधायक चुने जाने के बाद सत्ता में वापस आते रहे।

 

➨ जेपी आंदोलन के बाद चर्चा में आए

आपातकाल से पहले जब देश में छात्र आंदोलन और जेपी आंदोलन ने जोर पकड़ा था, उस आंदोलन की आग गोरखपुर विश्वविद्यालय तक भी पहुंच चुकी थी। उस समय विश्वविद्यालय में हरिशंकर तिवारी का वर्चस्व स्थापित हो गया था। कहा जाता है कि उनका अपना अलग गुट था। उन्हें ब्राह्मण छात्रों का मसीहा कहा जाता था और जब बलवंत सिंह ठाकुरों के समूह के नेता थे। पूर्वांचल में दोनों गुटों का आतंक जम चुका था। उनके खिलाफ कोई आवाज नहीं उठा सकता था। कई मौकों पर दोनों गुटों के बीच हिंसक झड़प भी हुई।

 

➨ हरिशंकर तिवारी 1985 में जेल गए

80 के दशक में हरिशंकर तिवारी एक महान बाहुबली नेता के रूप में प्रसिद्ध हुए थे। जेल में रहते हुए उन्होंने पहला चुनाव लड़ा था। यह 1985 का दौर था। उन्होंने चिल्लूपार के एक स्वतंत्र विधायक के रूप में प्रतिस्पर्धा की। उन्होंने कांग्रेस पार्टी के मार्कंडेय को बड़े अंतर से हराया। इसके साथ ही हरिशंकर तिवारी जेल में रहते हुए चुनाव जीतने वाले देश के पहले विधायक बन गए।

 

➨ यूपी के सभी दलों के साथ रहे ताल्लुक

हालांकि हरिशंकर तिवारी ने पहली बार में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को हराया, बाद में हरिशंकर तिवारी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। लेकिन कांग्रेस पार्टी के बाद भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी से भी उनके संबंध रहे। हरिशंकर तिवारी 1996 में कल्याण सिंह सरकार में विज्ञान एवं तकनीकी मंत्री के पद पर थे। और 2000 में स्टाम्प रजिस्ट्रेशन मंत्री बन गए। इसके बाद 2001 और 2002 में भी हरिशंकर तिवारी राजनाथ सिंह से लेकर मायावती तक की हुकूमत में शामिल रहे। मायावती सरकार में रहने के बावजूद सपा से उनके संबंध कायम रहे। इसी वजह से 2003 में उन्होंने सपा सरकार में मंत्री का पद भी हासिल किया।

 

➨ साल 2007 के बाद अपने बेटों को दी सियासत

इसी साल के बाद हरिशंकर तिवारी की नीति में गिरावट आने लगी। वह लगातार दो चुनाव हार गए। दोनों बार राजेश त्रिपाठी ने उन्हें चुनाव में हराया था। बाद में, उन्होंने चुनाव न लड़ने का फैसला किया और अपनी राजनीतिक विरासत अपने दो बेटों कुशल तिवारी और विनय शंकर तिवारी को सौंप दी।

 

 

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Amisha Singh

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