देहरादून : उत्तराखंड कई चीजों के लिए प्रसिद्ध है उसमें एक टमाटर भी है. उत्तराखंड के हल्द्वानी जिले के टमाटर ने अपने खास रंग और स्वाद के लिए देश और विदेशों में भी काफी डिमांड है. जो टमाटर पाकिस्तान और श्रीलंका भेजा जाता था आज उसको हल्द्वानी के किसान सड़कों पर फेंकने को मजबूर है. […]
देहरादून : उत्तराखंड कई चीजों के लिए प्रसिद्ध है उसमें एक टमाटर भी है. उत्तराखंड के हल्द्वानी जिले के टमाटर ने अपने खास रंग और स्वाद के लिए देश और विदेशों में भी काफी डिमांड है. जो टमाटर पाकिस्तान और श्रीलंका भेजा जाता था आज उसको हल्द्वानी के किसान सड़कों पर फेंकने को मजबूर है. पड़ोसी देशों में निर्यात बंद हो जाने से किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. किसानों को टमाटर की लागत भी नहीं मिल पा रही है. इससे किसान काफी परेशान नजर आ रहे है.
हल्द्वानी में तीन हजार से अधिक किसान टमाटर की खेती करते है उसी से उनकी रोजी-रोटी चलती है. हल्द्वानी में नवंबर से फरवरी तक इसकी आवक बाजार में होती है. हल्द्वानी के टमाटर कि मांग बाजार में काफी रहती थी. हल्द्वानी के टमाटर पाकिस्तान और श्रीलंका तक निर्यात किए जाते थे. मंडी के अधिकारियों का कहना है हर साल लगभग 40 हजार कुंतल स्थानीय टमाटर बिक्री के लिए आता है.
इस साल भी अभी तक 42 हजार से अधिक टमाटर किसानों ने मंडी में भेजा है. अगर हम बात करे 3-4 पहले की तो टमाटर का भाव 15 से 20 रुपये किलो तक बिकता था लेकिन इस बार टमाटर का भाव इतना गिर गया है कि किसान टमाटर को 3 से 4 रुपये बेचने को मजबूर है. किसानों को टमाटर की लागत भी नहीं निकल पा रही है. किसानों का कहना है कि टमाटर की लागत ही करीब 6 रुपये प्रति किलो पड़ रही है. किसानों को इतनी कम लागत मिल रही है किसान टमाटर को खेत में ही छोड़ दे रहे है.
पड़ोसी देशों से पिछलें कुछ सालों से संबंध खराब होने की वजह से टमाटर का निर्यात नहीं हो पा रहा है. इसका खामियाजा हल्द्वानी के किसानों को भुगतना पड़ रहा है. कुछ साल पहले तक श्रीलंका और पाकिस्तान से लगभग 4 से 5 हजार तक कुंतल टमाटर भेजा जाता था. जिससे किसानों को अच्छी कीमत मिल जाती थी. आखिरी बार 2020 में पाकिस्तान और श्रीलंका 500 कुंतल टमाटर भेजा गया था.
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