उत्तर प्रदेश (यूपी) में गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट पर समाजवादी पार्टी (सपा) ने कब्जा कर लिया है. सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ मानी जाने वाली गोरखपुर सीट पर बीजेपी को 28 वर्षों बाद हार का मुंह देखना पड़ा है. 'बुआ-भतीजे' यानी सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती की दमदार जोड़ी ने उपचुनाव में बीजेपी को चारों खाने चित कर दिया. बीजेपी को गोरखपुर सीट पर मिली हार के आखिर क्या कारण रहे, जानते हैं इन प्रमुख बिंदुओं से...
गोरखपुरः उत्तर प्रदेश की गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव के परिणाम आ चुके हैं. दोनों ही सीटें समाजवादी पार्टी (सपा) ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से छीन ली हैं. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव इस जीत से बेहद उत्साहित हैं. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती को धन्यवाद देते हुए उन्होंने इसका श्रेय दोनों ही पार्टी के कार्यकर्ताओं को दिया. 5 बार लगातार सांसद रह चुके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सीट गोरखपुर में सपा प्रत्याशी प्रवीण कुमार निषाद ने कब्जा जमाया. प्रवीण निषाद ने बीजेपी के उपेंद्र दत्त शुक्ला को 21,881 वोटों से हराया. गोरखपुर सीट पर बीजेपी को 28 साल बाद हार का सामना करना पड़ा है. साल 1991 से लगातार बीजेपी इस सीट पर काबिज रही थी. आखिर योगी के सीट छोड़ते ही ऐसा क्या हुआ कि बीजेपी को उसकी पारंपरिक सीट पर हार का सामना करना पड़ा. दरअसल इसके पीछे कई कारण हैं.
गौरतलब है कि हिंदू महासभा के नेता और गोरक्षपीठ के महंत अवैद्यनाथ ने पहली बार 1991 में बीजेपी के टिकट पर गोरखपुर से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. 1996 आम चुनाव में पार्टी ने उन्हें फिर टिकट दिया और महंत अवैद्यनाथ एक बार फिर संसद पहुंचे. 1998 में महंत अवैद्यनाथ के शिष्य और वर्तमान सीएम योगी आदित्यनाथ ने यहां से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. तब से वह लगातार गोरखपुर से सांसद चुने जा रहे थे. पिछले साल यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सत्ता में वापसी की और पार्टी हाईकमान ने सांसद योगी आदित्यनाथ को राज्य की कमान सौंपने का फरमान सुनाया. सीएम बनने के बाद उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया. लिहाजा उपचुनाव कराए गए और बीजेपी की ओर से योगी के खास माने जाने वाले बीजेपी के वरिष्ठ नेता उपेंद्र शुक्ला को मौका दिया गया.
बात करें 2014 लोकसभा चुनाव की तो योगी आदित्यनाथ ने 5,39,127 वोट हासिल किए थे. उन्होंने सपा प्रत्याशी राजमति निषाद को 3,12,783 वोटों से हराया था. बसपा उम्मीदवार को 1,76,412 वोट मिले थे लेकिन इस बार सपा और बसपा का साथ बीजेपी पर भारी पड़ गया. सपा नेता खुद इस बात को मान रहे हैं कि बसपा अपना वोट सपा को ट्रांसफर करने में कामयाब रही. बसपा कार्यकर्ताओं ने भी सपा प्रत्याशी के लिए जमकर कैंपेनिंग की. दूसरी ओर बीजेपी नेताओं का कहना है कि उपचुनाव में कम वोटिंग होना भी उनके लिए नुकसानदेह रहा. गौर करने वाली बात है कि दबी जुबान में बीजेपी नेता कह रहे हैं कि इस उपचुनाव में बीजेपी और योगी समर्थकों में इस बार वैसा उत्साह नहीं दिखा, जितना खुद योगी के उम्मीदवार होते वक्त दिखता था.
सपा का एक बार फिर निषाद समुदाय के नेता को टिकट देना भी उनके लिए फायदे का सौदा रहा. दरअसल गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र में निषाद समुदाय के सबसे ज्यादा वोटर्स हैं. यहां करीब 3.6 लाख निषाद वोटर्स हैं. वहीं ‘बुआ-भतीजे’ का साथ भी गोरखपुर की जनता को काफी पसंद आया. सपा के यादव-मुस्लिम वोट के साथ-साथ निषाद वोट और बसपा के दलित और ब्राह्मण वोटरों ने यहां चमत्कार किया और 28 वर्षों बाद बीजेपी का एक मजबूत किला आखिरकार दरक गया.