कटघरे में भगवान! यहां देवी-देवताओं को भी मिलती है उनकी गलतियों की 'सजा', जानें क्यों कांप जाएगी रूह

नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ में कई ऐसी परंपराएं हैं, जो आदिम संस्कृति की पहचान बन गई हैं. ऐसी ही एक परंपरा धमतरी जिले के वनांचल इलाके में भी देखने को मिलती है. गलती करने पर देवी-देवताओं को भी सजा मिलती है. ये सज़ाएँ देवताओं के प्रमुखों द्वारा दी जाती हैं जिन्हें न्यायाधीश कहा जाता है. हर वर्ष भादों माह की इस निश्चित तिथि को धमतरी जिले के अंतिम छोर पर स्थित कुर्सीघाट बोराई में आदिवासी देवी-देवताओं के न्यायाधीश भंगा राव माई की तीर्थयात्रा होती है, जिसमें बीस कोस बस्तर सहित सोलह परगना सिहावा के देवी-देवता शामिल होते हैं. और सात पाली उड़ीसा भाग लेते हैं.

भंगाराव माई का सदियों पुराना मंदिर

कुर्सीघाट में भंगाराव माई का सदियों पुराना दरबार है. इसे देवी-देवताओं का दरबार कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि भंगाराव माई की मंजूरी के बिना कोई भी देवता इस क्षेत्र में काम नहीं कर सकता है. वहीं, इस विशेष अदालत स्थल पर महिलाओं का आना वर्जित है. यदि देवी-देवता अपना कर्तव्य नहीं निभाते तो भंगाराव माई शिकायत के आधार पर उन्हें दंडित करती हैं. सुनवाई के दौरान देवी-देवता अदालत कक्ष में खड़े हैं. ऐसा माना जाता है कि सुनवाई के बाद अपराधी को सजा और वादी को न्याय मिलता है. विदाई के तौर पर ग्रामीण देवी-देवताओं के नाम अंकित बकरी या मुर्गी और लाट, बैरंग, डोली के साथ नारियल और पूरे चावल लेकर भंगाराव यात्रा पर जाते हैं, जो साल में एक बार आयोजित की जाती है.

शैतानों को दी जाती है सजा

यहां भंगाराव माई की मौजूदगी में एक-एक कर कई गांवों से आए शैतान, देवी-देवताओं की पहचान की जाती है. इसके बाद आंगा, लाड, डोली, बैरंग के साथ लाए गए मुर्गी, डांग, बकरी, को खाई जैसे गहरे गड्ढे के किनारे फेंक दिया जाता है, जिसे ग्रामीण जेल कहते हैं. पूजा के बाद देवी-देवताओं पर लगे आरोपों को गंभीरता से सुना जाता है. दोनों पक्षों में सुनवाई के बाद आरोप सिद्ध होने पर फैसला सुनाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि दोषी पाए जाने पर देवी-देवताओं को इसी तरह सजा दी जाती है.

Also read…

चेहरे पर ‘थूक’ लगाती हैं तमन्ना भाटिया, एक्ट्रेस की खूबसूरती का राज जान चौंक जाएंगे!

Tags

chhattisgarhGod in the dockgoddesses also get 'punishmentinkhabartoday inkhabar hindi news
विज्ञापन