Lok Sabha Election 2019 Darbhanga Seat Bihar: देश लोकसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. भाजपा, कांग्रेस सहित सभी क्षेत्रीय पार्टियां अपनी चुनाव तैयारियों में जोर-शोर से जुट चुकी है. वहीं हर सीट से टिकट हासिल करने की जद्दोजहद भी दिन-प्रतिदन तेज होती जा रही है. राजनीतिक रूप से बेहद सक्रिय रहने वाला राज्य बिहार में भी लोकसभा चुनाव को लेकर सियासी उहापोह तेज हो चला है. यहां जानिए बिहार की हाईप्रोफाइनल लोकसभा सीट दरभंगा के मौजूदा राजनीतिक हालातों को और वहां से टिकट पाने की होड़ में शामिल प्रबल दावेदारों को.
पटना, बिहार. आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर बिहार में लगातार सस्पेंस की स्थिति बनी हुई है. जहां कांग्रेस के राजद, रालोसपा के साथ महागठबंधन में शामिल होने की आधिकारिक घोषणा और सीटों का बंटवारा नहीं हुआ है, तो वहीं 17-17 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा करने वाले जदयू-भाजपा गठबंधन ने अभी तक सीटों के नाम घोषित नहीं किये हैं. संभावित प्रत्याशियों की नींद उड़ी हुई है और पोल पंडित अपना-अपना राग अलाप रहे हैं.
सबसे रोचक स्थिति दरभंगा में की है, जहां के वर्तमान सांसद कीर्ति आजाद से भाजपा का दामन छोड़ कर कांग्रेस के साथ नई पारी खेलने जा रहे हैं. ऐसे में वहां जदयू नेता संजय झा खुद को राजग के सबसे उपयुक्त दावेदार के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं और दरभंगा में हर छोटे-बड़े विकास का श्रेय लेने का प्रयास कर रहे हैं. संजय झा और उनके समर्थकों द्वारा यह भी प्रचारित किया जा रहा है कि दरभंगा सीट इस बार जदयू के खाते में जा रही है. गौरतलब है कि भाजपा को इस बार अपनी पांच सीटें जदयू के लिए छोड़नी हैं. लेकिन अभी इसको लेकर तस्वीर साफ नहीं हो पाई है कि वे पांच सीटें कौनसी होंगी, जिन्हें भाजपा जदयू के लिए छोड़ेगी.
वहीं भाजपा संगठन दरभंगा सीट छोड़ने को लेकर इच्छुक नजर नहीं आ रहा है. भाजपा के साथ हाल ही में जुड़े ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. एस.पी. सिंह को भी भाजपा से टिकट का प्रबल दावेदार माना जा रहा है. एक नया चेहरा और स्वच्छ छवि के कारण भाजपा उन पर दांव लगा सकती है. डॉ. एस.पी. सिंह पिछले कुछ महीनों से क्षेत्र में सक्रिय नजर आ रहे हैं. दरभंगा मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य और ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति के तौर पर डॉ. एस.पी. सिंह दरभंगा और आसपास के क्षेत्र में पहचाने जाते हैं.
वहीं, महागठबंधन में इससे भी ज्यादा असमंजस की स्थिति है. अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि कांग्रेस महागठबंधन का हिस्सा बनेगी या नहीं. इधर दरभंगा से ही चुनाव लड़ने की जिद पर अड़े कीर्ति आजाद कांग्रेस से टिकट की उम्मीद संजोए हैं, जबकि कई बार इस सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके राजद के कद्दावर नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री मो. अली अशरफ फातमी दरभंगा के स्वभाविक दावेदार हैं. वहीं महागठबंधन की एक अन्य सहयोगी विकासशील इंसाफ पार्टी (वीआईपी) के नेता मुकेश सहनी, जो ‘सन ऑफ मल्लाह’ के तौर पर प्रचारित हैं, दरभंगा के अलावा कहीं और नहीं जाना चाहते. दरभंगा में मल्लाहों के लगभग एक लाख वोट हैं, जो मुस्लिम-यादव समीकरण को और मजबूती प्रदान करेंगे. हालांकि दरभंगा का सहनी समाज भाजपा का परंपरागत वोटर माना जाता है. ऐसे में महागठबंधन के लिए स्थिति बेहद पेचीदा बनी हुई है.
पटना के राजनीतिक गलियारों में खबरें हैं कि जदयू के चुनावी गुरू और पार्टी उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर इस बार बिहार की सभी 40 सीटें जीतने की योजना पर काम कर रहे हैं. पूरे देश की स्थिति देखी जाए तो इस बार एनडीए बिहार के अंदर सबसे मजबूत जमीन पर खड़ा है. हाल ही में आए एक चुनावी सर्वे में एनडीए को 35 सीटें मिलती दिखाई गई हैं. इसलिए जदयू के रणनीतिकार केवल जिताऊ उम्मीदवार पर दांव लगाना चाहते हैं. भाजपा के साथ बराबर सीटों पर लड़ने का जदयू इस बार किसी भी सूरत में भाजपा से कम सीटें नहीं लाना चाहेगी, ताकि अगले विधानसभा चुनावों में वह गठबंधन के अंदर मजबूती से ताल ठोक सके.
बहरहाल, बिहार और दरभंगा का चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो कहना कठिन है, लेकिन इतना तो तय है कि संभावित प्रत्याशियों के लिए यह सबसे ज्यादा बेचैनी का दौर है.